बुधवार, 8 अक्टूबर 2025

कविताएं

महंगा पन रोजाना हमको देखो बढ़ाना ना चाहिये 
यो भ्रष्टाचार शिखर के ऊपर चढ़ाना ना चाहिये
धोखा व्यापार कभी भी उकसाना  ना चाहिये 
इन्सानियत को कभी देखो भुलाना ना चाहिये 
औछा पन हमें कभी भी  खिंडाना ना चाहिये 
संविधान देश का कभी भी भुलाना ना चाहिये 
जालसाज पाप कर्म कभी अपनाना ना चाहिये
भाईचारा आपस का कभी तुड़‌वाना ना चाहिये 
कमेरे को बिल्कुल हमको बहकाना ना चाहिये 
मेहनतकश को  कभी भी तड़‌फाना ना चाहिये 
जनतन्त्र का मजाक बिल्कुल उडाना ना चाहिये 
सवाल करने वाले को कभी डराना ना चाहिये 
नौजवान को आज नशा पता कराना ना चाहिये 
समाज  के अन्दर चौड़ी खाई खुदाना ना चाहिये
भ्रष्टाचार हमको शिखर ऊपर चढ़ाना ना चाहिये
देश का नाश करे वो व्यापार बढ़ाना ना चाहिये 
राजनीति को ढाए ऐसा भ्रष्टाचार फैलाना ना चाहिये 
सब पर रोब जमाए ऐसा थानेदार बिठाना ना चाहिये
लिंग भेज जो बढ़ाए ऐसा उपचार बताना ना चाहिये
गरीबी की जो बढ़ाए ऐसा संसार रचाना ना चाहिये
औरतों के हकों पर हाहाकार मचाना ना चाहिये
भाईचारे को तोड़े ऐसा व्यवहार दिखाना ना चाहिये
बहुविविधता देश की पे तलवार चलाना ना चाहिये
सबका देश हमारा देश ये प्रचार दबाना ना चाहिये