गुरुवार, 17 अक्तूबर 2013

KISSA FAUJEE MEHAR SINGH

किस्सा फौजी मेहर सिंह
                फौजी मेहरसिंह गांव बरोने का रहने वाला था। उसकी लिखी हुई बातें तो सब सुनते हैं मगर उसकी जिन्दगी के बारे में लोगों को बहुत कम पता है। उसमें देशप्रेम बहुत गहरा था यह बात बहुत कम लोगों की जानकारी में है। मेहर सिंह ही उस दौर का ऐसा व्यक्तित्व है जो किसान है,कवि है और फौजी भी है। जो उस दौर में छुआछूत के खिलाफ भी संवेदनषील है और हरएक कौम से हुक्का पानी का सम्बन्ध रखता था। क्या बताया कवि ने:
                                                                -1-
                खरखोदे धोरै सोनीपत मैं, बरोणा नाम सुण्या होगा।
                इसे गाम का रहणे आला, मेहरसिंह नाम सुण्या होगा।।

1              पैदा कद सी हुया मेहरसिंह, तारीख कोण्या याद मेरै
                फौज के मां भरती होग्या, बणाण गाण का शोक करै
                बुराई तै रहया दूर परै, यो किस्सा आम सुण्या होगा।।
2              गरीब किसान का बेटा था गरीबी मैं जवान हुया
                पढ़ लिख थोडा पाया भोला सा इन्सान हुया
                दुनिया के मां नाम हुया सबनै पैगाम सुण्या होगा।।
3              घर कुण्बे नै रोक लगाई नहीं रागनी गावैगा
                ऐसे कर्म करैगा तै तूं नर्क बीच मैं जावैगा
                तूं म्हारी नाक कटावैगा उसपै इल्जाम सुण्या होगा।।
4              नहीं हौसला कदे गिराया तान्ने सुणे गया रणबीर।
                दिल मैं जो भी बात खटकी वाह घड़दी सही तसबीर
                सरहद उपर लिखै था वीर उसका सलाम सुण्या होगा।।

                फौजी मेहरसिंह किसान परिवार में बरोना गांव में पैदा हुआ। इस इलाके के मषहूर गावों में से एक गांव है बरोना। जिन्दगी की सच्चाईयों से उसका रोजाना सामना होता था। वह मेहनती था। गरीब परिवार से था। गाता बहुत अच्छा था। एक दिन खेत मंे पानी लगा रहा था। वहां उसकी काली नागण से सेटफेट हो जाती है। क्या बताया भला:
रागनी 2
टेक         बन्धे उपर नागन काली डटगी फण नै ठाकै।
                सिर तै उपर कस्सी ठाई मारी हांगा लाकै।।
1              नागन थी जहरीली वा फौजी का वार बचागी
                दे फुफकारा खड़ी हुई आंख्यां मैं अन्धेर मचागी
                दो मिनट मैं खेल रचागी चोट कसूती खाकै।।
2              हिम्मत कोण्या हारया फौजी हटकै उसनै वार किया
                कुचल दिया फण लाठी गेल्यां नाका अपणा त्यार किया
                चला अपणा वार लिया काली नागन दूर बगाकै।।
3              रात अन्ध्ेरी गादड़ बोलैे जाड्डा पड़ै कसाई
                सुर सुर करता पानी चालै घणी खुमारी छाई
                डोले उपर कड़ लाई वो सोग्या मुंह नै बाकै।।
4              बिल के मां पानी चूग्या सूकी रैहगी क्यारी
                बाबू का सांटा दिख्या या तबीयत होगी खारी
                मेहरसिंह जिसा लिखारी रोया मां धेरे जाकै।।

                फौजी मेहरसिंह को गाणे बजाणे का बड़ा शौक था। रात को गाता तो बहुत से लोग सुनने बैठते। मेहरसिंह को हुक्का बिगाड़ कहा जाता था मतलब वह हर जात का हुक्का पी लेता था। मेहर सिंह का पिता आर्य समाजी था। उसे मेहरसिंह का गाना बजाना पसन्द नहीं था। कई बार मना किया और एक दिन तो पिता ने गुस्से में भरकर सांटा उठा लिया उसकी पिटाई करने के लिए। भले ही आर्य समाज इस इलाके में देर से आया मगर इसका प्रभाव यहां के सामाजिक सांस्कृतिक जीवन पर पड़ा। आर्य समाज ने षिक्षा के प्रसार का काम किया और महिला षिक्षा पर भी काफी जोर दिया। मगर कोएजुकेषन का विरोध किया। इसी प्रकार सांगों का भी विरोध हुआ। क्या बताया भला:
रागनी 3
टेक         सांटा ठा लिया बाबू नै कांपी मेहर सिंह की काया।।
                तूं सांगी बणणा चाहवै कोण्या असली मां का जाया।।
1              तेरे गाणे और बजाणे नै मानै मेरा शरीर नहीं
                बैंजू घड़वा किस्सा रागनी किसानां की तासीर नहीं
                सांटा मारकै बोल्या मनै बणाणा तूं फकीर नहीं
                मन की मन मैं पीग्या ना बोलकै कति सुणाया।।
2              चुपचाप देख कै बाबू बोल्या राह बांध्ूंगा तेरा
                कै तो बात मान ले ना तो देखूं कुआं झेरा
                धरती थोड़ी नहीं गुजारा क्यूकर बसज्या डेरा
                छोड़ कै हल नै गावै रागनी हमनै पटज्या बेरा
                खाल तार ल्यूंगा तेरी जो मनै कितै गांवता पाया।।
3              तेरी रागनी म्हारी गरीबी या क्यूकर दूर करैगी
                खेत कमा कै फौज मैं जा ना दुनिया नाम धरैगी
                एक दिन बरोने के मां तेरी भूखी मात मरैगी
                कड़वी लागै बात मेरी मुश्किल तै आज जरैगी
                फेर न्यों कैहगा मैं पहलम तै ना तनै समझाया।।
4              खाकै मार बैठग्या छोरा धरती नै कुरेदन लाग्या
                बाबू नै छाती कै लाया फेर उसका छोह भाग्या
                बोल्या आंख खोल बावले सारा जमाना जाग्या
                रणबीर सिंह भी मेहर सिंह के राग सुरीले गाग्या
                चिन्ता के मां घिरग्या छोरा कुछ ना पीया खाया।

    इस प्रदेष में दादा लखमी को कौन नहीं जानता। काफी मषहूर सांगी रहे अपने दौर के और कई सांगों की रचना की और सांग खेले भी। लखमी दादा और मेहर सिंह के बारे में दो तीन अवसरों पर आमना सामना होने की बातें कई बार सुनने कां मिलती हैं। एक बार लखमी दादा सांपला में दादा लखमी अपना प्रोग्राम कर रहे थे वहां पर दादा लखमी ने मेहर सिंह को काफी कड़े षब्दों में सबके सामने ध्मका दिया बताते कि मेहर सिंह वहां से उठकर कुछ दूर जाकर खरड़ बिछा कर गाने लगा। कुछ ही देर में सारे लोग मेहर सिंह की तरफ चले गये और दादा की स्टेज खाली हो गइ्र क्या बताया भला कवि ने -
                                                -4-
मेहर सिंह लखमी दादा एक बै सांपले मैं भिड़े बताये।।
लखमी दादा नै मेहरु धमकाया घणे कड़े षब्द सुनाए।।
सुण दिल होग्या बेचैन गात मैं रही समाई कोन्या रै
बोल का दरद सहया ना जावै या लगै दवाई कोन्या रै
सबकै साहमी डांट मारदी गल्ती उसतैं बताई कोन्या रै
दादा की बात कड़वी उस दिन मेहरु नै भाई कोन्या रै
सुणकै दादा की आच्दी भुन्डी उठकै दूर सी खरड़ बिछाये।।
इस ढाल का माहौल देख लोग एक बै दंग होगे थे
सोच समझ लोग उठ लिए दादा के माड़े ढंग होगे थे
लखमी दादा के उस दिन के सारे प्लान भंग होगे थे
लोगां ने सुन्या मेहर सिंह सारे उसके संग होगे थे
दादा लखमी अपनी बात पै बहोत घणा फेर पछताए ।।
उभरते मेहर सिंह कै एक न्यारा सा अहसास हुया
दुखी करकै दादा नै उसका दिल भी था उदास हुया
दोनूं जन्यां ने उस दिन न्यारे ढाल का आभास हुया
आहमा साहमी की टक्कर तैं पैदा नया इतिहास हुया
उस दिन पाछै एक स्टेज पै वे कदे नजर नहीं आये।।
गाया मेहर सिंग नै दूर के ढोल सुहाने हुया करैं सैं
बिना बिचार काम करें तैं घणे दुख ठाने हुया करैं सैं
सारा जगत हथेली पीटै ये लाख उल्हाने हुया करैं सैं
तुक बन्दी लय सुर चाहवै लोग रिझाने हुया करैं सैं
रणबीर सिंह बरोने आले नै सूझ बूझ कै छंद बनाये।।

                                एक बार मेहर सिंह स्मारक समिति के लोग गांव की चैपाल में बैठ कर उसके जीवन पर चर्चा कर रहे थे। उसकी रचनाओं की किताब प्रकाषित करने की योजना बनी। उसके बारे में कुछ जानकारी लेने के लिए मेहर सिंह की भाभी को चैपाल में बुला लिया और मैने उससे प्रार्थना कि की वह मेहर सिंह के जीवन की कुछ खास बातें बताए। उसकी भाभी ने बताया कि मेहरु मैं तो दो अवगुण थे। सुनकर वहां बेठे सभी लोगों को थोड़ा झटका सा लगा। मैंने भी दो सैकिन्डके लि सोचा और फिर कहा कि बताओ तो सही वो दो अवगुण क्या थे। भाभी ने बताया कि एक तो वह हुक्का बिगाड़ था। जिसके यहां जाता उसी का हुक्का पी लिया करता। ;उन दिनों छुआछूत इतली थी कि अलग अलग जातों के अपने हुक्के होते थेद्ध सुनकर मुझे कुछ राहत मिली। मैंने फिर पूछा दूसरा अवगुण क्या था? उसने बताया कि कई गांव गुहांड के मुसलमानों के यहां उसकी बड़ी पक्की यारी दोस्ती थी। फौजी मेहर सिंह के ये दोअवगुणसुनकर बहुत अच्छा लगा। और यह और भी अच्छा लगा कि यह अवगुण 50-60 लोगों के बीच चैपाल में सामने आये। मेहर सिंह का परिवार एक सामान्य गरीब किसान परिवार था। अपने परिवार के आर्थिक कारणें के चलते मेहर सिंह फौज में भरती हो जाता है। जाने से पहले उसकी पत्नी प्रेम कौर उसको दिल की बात बताती है। उसे फौज में जाने से मना करती है।आपस में बहस होती है। सवाल जवाब होते हैं-
                                                                5
                                                तर्ज चैकलिया
                रागनी उपरा तली की........
करुं बिनती हाथ जोड़ कै मतना फौज मैं जावै।।
मुष्किल तैं मैं भरती होया तूं मतना रोक लगावै।।
एक साल मैं छुटी आवै होवै मेरै समाई कोन्या
चार साल तैं घूम रहया आड़ै नौकरी थ्याई कोन्या
बनवास काटना दीखै सै कदे कसूर मैं आई कोन्या
बेरोज गारी का तनै बेरा मैं करता अंघाई कोन्या
आड़ै खा कमा ल्यांगे नहीं तेरी समझ मैं आवै।।
मैं के जाकै राजी सूं पेट की मजबूरी धक्का लावै।।
थोड़ा खरचा करल्यांगे म्हारा आसान गुजारा होज्यागा
बेगार करनी पड़ैगी  हमनै म्हारा जी खारया होज्यागा
साझे बाधे पै ले ल्यांगे किमै और साहरा होज्यागा
सोच बिचार लिए सारी म्हारा जीना भारया होज्यागा
कोन्या चाहिये तेरी तिजूरी जी गैल रैहवणा चाहवै।।
मनै तान्ने दिया करैगी ना तूं बूजनी घड़ाकै ल्यावै।।
ठाडे पर ना बसावै हीणेे पर दाल गलै सै देखो
धनवानां की चान्दी होरी ना उनकी बात टलै देखो
बात इसी देख जी मेरा  बहोत घणा जलै सै देखो
जो म्हारे बसकी ना उसपै के जोर चलै से देखो
दिल मेरा देवै सै गवाही जाकै तूं नहीं उल्टा लखावै।।
इसी फेर कदे ना सोचिए न्यों फौजी आज बतावै।।
तनै जाना लाजमी फौजी मेरी कोन्या पार बसाई
अंगे्रजां नै देष लूट लिया भगतसिंह कै फांसी लाई
उनके राज ना सूरज छिपता क्यों लागी तेरै अंघाई
सारे मिलकै जिब देवां घेरा ना टोहया पावै अन्याई
सारी बात सही सैं तेरी पर मेरा कौण धीर बंधावै।।
देखी जागी जो बीतैगी रणबीर ना घणी घबरावै।।

                कहतें हैं मुसीबतें तन्हाा नहीं आती। 1936 .37 में इस सारे क्ष्ेत्र में गन्ने की सारी फसल पायरिला की बीमारी ने बरबाद कर दी- गन्ने से गुड़ नहीं बना और राला एक से दो रुपये मन के हिसाब से बेचना पड़ा। इस प्रकार जमींदार बरबाद हो गये। इसी बीमारी के डर से अगले साल गन्ना बहुल कम बोया। इसी समय भयंकर अकाल भी पड़े थे इस इलाके में। प्रथम महायुद्ध में इस क्षेत्र से काफी लोग फौज में गये थे। इसके बाद सन् 35 के आस पास मेहर सिंह पर भी घर के हालात को देखते फौज में भरती होने का दबाव बना। सही सही साल तो नहीं बता पाये लोग मगर 35-37 के बीच ही मेहर सिंह फौज में भरती होता है। मेहरसिंह जब फौज में जाने लगता है तो प्रेम कौर रोने लगती है। मेहरसिंह का दिल भर आता है। वह अपने मन को काबू में करके प्रेम कौर को समझाता है। क्या बताया भला:
रागनी 6
टेक         रौवे मतना प्रेम कौर मैं तावल करकै ल्यूंगा।।
                थोड़े दिन की बात से प्यारी फौज मैं तनै बुला ल्यूंगा।।
1              भेज्या करिये खबर बरोणे की, जरूरत नहीं तनै इब रोेणे की
                सोचिये मतना जिन्दगी खोणे की, ना मैं भी फांसी खा ल्यूंगा।।
2              जिले रोहतक मैं खरखोदा सै, बरोणा गाम एक पौधा सै
                फौजी ना इतना बोदा सै, घर का बोझ उठा ल्यूंगा।।
3              बीर मरद की रखैल नहीं सै, बराबरी बिन मेल नहीं सै
                हो आच्छी धक्का पेल नहीं सै, मैं बाबू नै समझा ल्यूंगा।।
4              मेहनत करकै खाणा चाहिये, फिरंगी मार भजाणा चाहिये
                रणबीर सुर मैं गाणा चाहिये, ध्यान देश पै ला ल्यूंगा।।

                मेहर सिंह फौज में चला गया। माहौल पूरी दुनिया में संकट का दौर था। दूसरे महायुद्ध के बादल मुडरा रहे थे। इधर मेहर सिंह की लिखी रागनियां लोगों बीच जाने लगी थी। मेहरसिंह की बनाई रागनी प्रेम कौर सुनती है। नल दमयन्ती का किस्सा सुनकर वह नही मन बहुत कुछ सोचती है। मेहरसिंह को चिट्ठी लिखवाने का मन करता है। मगर मन मारकर रह जाती है। पर सोचते सोचते एक दिन गली में रह रहे अपने रिष्ते में देवर हवा सिंह से एक चिठ्ठी मेहर सिंह को लिखवाती है। क्या बताया भला:
रागनी 7
टेक         नल दमयन्ती की गावै तूं कद अपनी रानी की गावैगा।।
                नल छोड़ गया दमयन्ती नै तूं कितना साथ निभावैगा।।
1              लखमीचन्द बाजे धनपत नल दमयन्ती नै गावैं क्यों
                पूरणमल का किस्सा हमनै लाकै जोर सुणावैं क्यों
                अपणी राणी बिसरावैं क्यों कद खोल कै भेद बतावैगा।।
2              द्रोपदी चीर हरण गाया जा पर तनै म्हारे चीर का फिकर नहीं
                हजारां चीर हरण होरे आड़ै तेरे गीत मैं जिकर नहीं
                आवै हमने सबर नहीं जो ना म्हारे गीत सुणावैगा।।
3              देश प्रेम के गीत बणाकै जनता नै जगाइये तूं
                किसान की बिपता के बारे में बढ़िया छन्द बनाइये तूं
                इतनी सुणता जाइये तूं कद फौज मैं मनै बुलावैगा।।
4              बाबू का ना बुरा मानिये करिये कला सवाई तूं
                अच्छाई का पकड़ रास्ता ना गाइये जमा बुराई तूं
                कर रणबीर की मन चाही तूं ना पाछै पछतावैगा।।

                फौज में भी माहौल काफी तनाव का था। फौजियों को छुटियां नहीं मिल रही थी। मेहरसिंह को प्रेम कौर के द्वारा लिखवाई गई चिट्ठी मिलती है। पढ़ता है और घर की याद आती है। जवाब में चिट्ठी लिखने की सोचता है। क्या बताया भला:
रागनी 8
टेक         हवा सिंह के लिखी हाथ की चिट्ठी तेरी आई रै।।
                तम्बू के म्हां पढ़ी खोल कै खुशी गात मैं छाई रै।।
1              दुनिया गावै राजे रानी या तो मेरी मजबूरी सै
                किसान और फौजी पै गाणा बहोतै घणा जरूरी सै
                दुनिया कहती आई सै नहीं होती ठीक गरूरी सै
                काम करने आल्यां की क्यों खाली पड़ी तिजूरी सै
                भारत देश आजाद करावां मिलकै कसम उठाई रै।।
2              कां डंका खेलण खातर पेड़ गाम का भावै सै
                याद आवै सै खेल कबड्डी बख्त शाम का खावै सै
                शिखर दोफारी ईंख नुलाणा जलन घाम का सतावै से
                लिखते लिखते ख्याल मनै तेरे नाम का आवै सै
                फौज में रहना आसान नहीं साथी नै बात बताई रै।।
3              अंग्रेजां नै मार भगावां यो देश आजाद कराणा सै
                सुभाष चन्द्र बोस बताग्या ना पाछै कदम हटाणा सै
                तोड़ जंजीर गुलामी की यो भारत नया बणाणा सै
                जिन्दा रहे तो फेर मिलांगे नहीं तनै घबराणा सै
                भोलेपन के कारण हमनै चोट जगत मैं खाई रै।।
4              मित्र प्यारे सगे सम्बन्ध्ी मेरा सब तम प्रणाम लियो
                कहियो फौजी याद करै सै थोड़ा दिल थाम लियो
                आजादी नै कुर्बानी चाहिये सुन मेरा पैगाम लियो
                भगतसिंह क्यों फांसी तोड्या बात समझ तमाम लियो
                मेहरसिंह ने जवाब दियो रणबीर करै कविताई रै।।

                बात उस समय की है जब भारतवासी आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे। मेहरसिंह मोर्चे पर था। उसके पिता नन्दराम ने उसको एक चिट्ठी लिखवाई। क्या लिखवाता है भला:
रागनी 9
टेक         ध्यान लगाकै सुणिये बेटा कहै बाबू नन्दराम तेरा।।
                लंदन आले राज करैं सैं हो लिया देश गुलाम तेरा।।
1              मास्टर धोरैे ईस्ट इन्डिया का तनै नाम सुण्या होगा।
                इमदाद करैं व्यापार फैला कै उनका काम सुण्या होगा।
                कारीगरां के हाथ कटा दिये किस्सा आम सुण्या होगा।
                गद्दारां मैं मुरब्बे बांटे यो हाल तमाम सुण्या होगा
                भगतसिंह फांसी तोड़या हे भारत माता जाम तेरा।।
2              जो बढ़िया थी चीज म्हारी ये लेगे लन्दन मैं ठाकै
                राज के उपर कब्जा करगे हम देखैं मुंह नै बाकै
                मलमल खादी खत्म करे म्हारे आपस मैं सिर फुड़वाकै
                तुरत आंख फुड़ाई चले जो उनकी तरफ लखाकै
                बन्दर बांट इसी मचाई कर दिया काम तमाम तेरा।।
3              फौज मैं बेटा डरिये मतना बनिये वीर सिपाही तूं
                तोप चलाइये दुश्मन पै करिये गात समाई तूं
                भारत मैं आजादी ल्याकै करिये सफल कमाई तूं
                कदम बढ़ा मत उल्टा हटिये ना खाइये नरमाई तूं
                घाल दिये घमशान सरहद पै, होज्या रोशन गाम तेरा।।
4              आजादी अनमोल चीज सै शहीदों को है मेरा सलाम
                सुखदेव भगतसिंह राजगुरु ये देरे देख तनै पैगाम
                तन मन धन दिये वार मेहरसिंह इतना करिये मेरा काम
                रणबीर सिंह नै गीत बनाया दोनों का सै बरोना गाम
                प्रेम कौर कै बस्या रहै सै हरदम दिल मैं नाम तेरा।।

एक आम महिला कार्य कर्ता सुभाशचन्द्र बोस से कुछ बातें करती है। मेहर सिंह भी सुनता है वे बातें और फिर सोच कर एक रागनी बनाता है और सुनाता है फौजी भाईयों को। क्या बताया भला-
                                                                10
कांग्रेस क्यों छोडडी तनै इतना तो मनै बताईये तूं।।
गर्म दल क्यों बनाया था इतना मनै समझाईये तूं।।
के हालात बणे बोस इसे जो कांगे्रस छोड़नी पड़गी
सबतैं बडडी पार्टी तैं क्यों तनै बात मोड़नी पड़गी
एक एक बात आछी ढालां खोल कै दिखाईये तूं।।
माणस लड़ाकू और ज्ञानी कहते जनता नै लाग्या
तेरे प्रति मोह बहोत यो कहते जनता का जाग्या
सतो फतो सरतो साथ सैं मतना कति घबराईये तूं।।
न्यूं दिल कहता बोस मेरा तूं साच्चा लीडर म्हारा
कहते सारे हिन्दुस्तान मैं सबके दिल का तूं प्यारा
मनै दिल की बात कैहदी दिल की बात सुनाईये तूं।।
जय हिन्द जय हिन्द होरी यो पूरा भारत याद करै
बढ़ते जाओ बोस आगै रणबीर बी फरियाद करै
म्हारी जरुरत हो कदे तो सिंघापुर मैं बुलाईये तूं।।

मेहर सिंह को दूसरे फौजियों से अकाल के बारे में पता लगता है। बताते हैं कि किसानों की हालत बहुत कमजोर हो चली थी। खाने के लाले पड़ने लगे थे। वह सोचता है और किसान पर एक रागनी बनाता है। क्या बताया भला-
                                                11 -मोलड़
मोलड़ बता बता कै तेरा आत्मविष्वास खो राख्या सै।।
अन्नदाता कैह कैह कै घणा कसूता भको राख्या सै।।
उबड़ खाबड़ खेत संवारे खूब पसीना बहाया रै
माटी गेल्यां माटी होकै नै भारत मैं नाम कमाया रै
तेरी मेहनत की कीमत ना कर्ज मैं डबो राख्या सै।।
किसान तेरी जिन्दगी का कई लोग मखौल उडाते
ये तेरी मेहनत लूट रहे तनै पाजी बी बताते
तेरी जमात किसानी सै जात्यां का जहर बो राख्या सै।।
जिस दिन किसानी देष की कठी होकै नारा लावैगी
उस दिन तसवीर कमेरे या जमा बदल जावैगी
तेरी कमाई का यो हिसाब अमीरां नै ल्हको राख्या सै।।
मजदूर तेरा साथ देवै तूं कड़वा लखावै मतना
दूसरां की भकाई मैं इसतैं दूरी बढ़ावै मतना
कहै रणबीर क्यं जात पै झूठा झगड़ा झो राख्या सै।।

                                                                                12
सुभाश बोस के बारे में जब फौजी बरेली के अस्पताल में दाखिल था तो सोचता था। बहुत दिल से सम्मान करता था सुभाश बोस का फौजी मेहर सिंह। दूसरे फौजी बोस के जीवन के बारे में बताते हैं फौजी को तो मेहर सिंह एक रागनी बनाता है। क्या बताया भला-

गुलाम देष मैं जन्म लिया देई देष की खातर कुरबानी
दिमाग मैं घूमें जावै मेरै थारी खास टोपी की निषानी
बदेष गये पढ़ने खातर आई सी एस पास करी
उड़ै देख नजारे आजादी के आकै डिग्री पाड़ धरी
भारत की आजादी खातर लादी थामनै पूरी जिन्दगानी।।
काांग्रेस मैं रहकै नै चाही लड़नी तनै लड़ाई दखे
तेरे विचार का्रन्ति कारी थे उडै़ ना पार बसाई दखे
बोल्या थाम खून दयो मैं दयूं तमनै आजादी हिन्दुस्तानी।।
सिंघापुर मैं जाकै थामनै आजाद हिन्द फौल बनाई
हिटलर तैं पड़े हाथ मिलाने चाहे था घणा अन्याई
लक्ष्मी सहगल साथ थारै सैं गेल्यां महिला बेउनमानी।।
हवाई जहाज मैं चल्या था कहैं उड़ै हादसा होग्या दखे
यकीन नहीं आया आज ताहिं षक के बीज बोग्या दखे
के लिख सकै तेरे बारे मैं यो रणबीर सिंह अज्ञानी।।
                मेहरसिंह को फौज में बहुत सी बातों का पता लगता है। देश को आजाद करवाने के लिए फौज में एक खुफिया संगठन था। मेजर जयपाल इसका नेता था। इसी संगठन का एक फौजी असलम मेेहरसिंह से मिलता है। गांव में भी मुस्लिम परिवारों से मेहरसिंह की दोस्ती थी। बहुत सी बातें होती हैं। मेहसिंह उसके कहने पर किसानों पर एक रागनी बनाता है। क्या कहता है भला:
रागनी 13
टेक         एक बख्त इसा आवैगा ईब किसान तेरे पै।
                राहू केतू बणकै चढ़ज्यां ये धनवान तेरे पै।।
1              म्हारी कमाई लूटण खातर झट धेखा देज्यां रै
                भाग भरोसे बैठे रहां हम दुख मोटा खेज्यां रै
                धरती घर कब्जा लेज्यां रै बेइमान तेरे पै।।
2              सारी कमाई दे कै भी ना सूद पटै तेरा यो
                ठेठ गरीबी मैं सुणले ना बख्त कटै तेरा यो
                करैगा राज लुटेरा यो फेर शैतान तेरे पै।।
3              ध्रती गहणै धर लेंगे तेरी सारी ब्याज ब्याज मैं
                शेर तै गादड़ बण ज्यागा तू इसे भाजो भाज मैं
                कौण देवै फेर इसे राज मैं पूरा ध्यान तेरे पै।।
4              इन्सानां तै बाधू ओड़े डांगर की कीमत होगी
                सरकार फिरंगी म्हारे देश मैं बीज बिघन के बोगी
                अन्नदाता नै खागी ना बच्या ईमान तेरे पै।।
5              सही नीति और रस्ता हमनै ईब पकड़ना होगा
                मेहनत करने आले जितने मिलकै लड़ना होगा
                हक पै अड़ना होगा यो भार श्रीमान तेरे पै।।
6              मेहनतकश नै बी हक मिलै इसी आजादी चाहिये
                आबाद होज्या गाम बरोना ना कति बर्बादी चाहिये
                रणबीर सा फरियादी चाहिये जो हो कुर्बान तेरे पै।।

                तीजों का त्यौहार जाता है। छुट्टी मिली नहीं। जनमानस में यह हरियाली तीज के नाम से जानी जाती है। यह मुख्यतरू स्त्रियों का त्योहार है। इस समय जब प्रकृति चारों तरफ हरियाली की चादर सी बिछा देती है तो प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित होकर नाच उठता है। जगह.जगह झूले पड़ते हैं। स्त्रियों के समूह गीत गा.गाकर झूला झूलते हैं। मेहरसिंह को रात को सपना आता है और देखता है कि प्रेम कौर तीज झूलने जा रही है। क्या देखता है भला:

रागनी 14
टेक         लाल चूंदड़ी दामण काला, झूला झूलण चाल पड़ी।
                कूद मारकै चढ़ी पींग पै देखै सहेली साथ खड़ी।।
1              झोटा लेकै पींग बधई, हवा मैं चुंदड़ी लाल लहराई
                उपर जाकै तले नै आई, उठैं दामण की झाल बड़ी।।
2              पींग दूगणी बढ़ती आवै, घूंघट हवा मैं उड़ता जावै
                झोटे की हिंग बधावै, बाजैं पायां की छैल कड़ी।।
3              मुश्किल तै आई तीज, फुहारां मैं गई चुंदड़ी भीज
                नई उमंग के बोगी बीज, सुख की देखी आज घड़ी।।
4              रणबीर पिया की आई याद, झूलण मैं आया नहीं स्वाद
                नहीं किसे नै सुनी फरियाद, आंसूआं की या लगी झड़ी।।

                मेहर सिंह को अपनी मां से बड़ा प्यार था। बचपन में बड़ी लोरी सुणाया करती थी। एक दिन फौजी सिंघापुर के बाजार में जा रहा था


 कुछ महिलाएं अपने बच्चों के साथ बाजार में दिखाई देती हैं फौजी मेहर सिंह को अपनी मां की याद जाती है। तो मां के बारे में सोचने लगता है। क्या सोचता है भला:
रागनी 15
टेक         तेरी छाती का पिया हुआ मनै दूध लजाया री।।
                लोरी दे दे कही बात तनै केहरी शेर बणाया री।।

                साधु भेष मैं लाखों रावण देश मैं कूद रहे सैं
                पंडित मुल्ला सन्त महन्त पी सुलफा सूझ रहे सैं
                पत्थर नै क्यों पूज रहे सैं ना कदे समझाया री।।

                क्यूकर समाज बढ़ै आगै या बाड़ खेत नै खावै सै
                मुट्ठी भर तो ऐश करैं क्यों किसान खड़या लखावै से।
                खोल कै जो बात बतावै सै ना ऐसा पाठ पढ़ाया री।।

                आच्छे और भूण्डे की लड़ाई धुर तै चाली आवै सै
                बुराई नै दे मार अच्छाई वार ना खाली जावै सै
                धनवान ठाली खावै सै यो कोण्या राज बताया री।।

                यार दोस्त बैठ फुलसे पै हम न्यों बतलाया करते
                गाम राम मैं के होरया सै जिकर चलाया करते
                ल्हुक छिप कै बणाया करते रणबीर गीत जो गाया री।।

                एक बार फौज में जाने के बाद मेहरसिंह बहोत दिन तक वापिस नहीं आया। प्रेम कौर खेत में जाते हुए सोचती है कि बड़ा बेदरद निकला आने का नाम ही नहीं लेता। क्या सोचती है भला:
रागनी 16
टेक         सन पैंतीस मैं गया फौज मैं कोण्या आया मुड़कै।।
                आज बी मेरै धेखा सा लागै जणों लिकड़या हो जड़कै।।

                जाइयो नाश गरीबी तेरा हाली फौजी बणा दिया
                फौज मैं भरती होकै उसनै नाम अपणा जणा दिया
                पैगाम सबतैं सुणा दिया था गया बाबू तै लड़कै।।

                मन का भोला तन का उजला सारा गाम कहै
                बख्त उठकै सब भाइयां नै अपणी रामै राम कहै
                करता नहीं आराम कहै कदै सांझ सबेरी तड़कै।।

                पक्का इरादा जिद्द का पूरा बहोत घणा तूं पाया
                छोड़ डिगरग्या घर अपणा नहीं फिरकै उल्टा आया
                सिंघापुर मैं जावैफ गाया छन्द निराला घड़कै।।

                एक दो बै छुट्टी आया वो आगै नाता तोड़ गया
                देश प्रेम के गाणे गाकै लोगां का मन जोड़ गया
                रणबीर सिंह दे मोड़ गया उड़ै मोर्चे उपर अड़कै।।

बहुत इन्तजार किया प्रेमकौर ने फौजी के छुट्टी आने का। तरह तरह की खबरें थी। भारत की फौज के बारे अफवाहें जारी थी। आजाद हिन्द फौज के लिए सुभाश चन्द्र बोस बहुत प्रयास कर रहे थे। मेहर सिंह का कोई अता पता नहीं लग रहा था। तब प्रेम कौर एक चिठ्ठी लिखवाती है। क्या बतसष भला-
                                                                                17
लिख्या चिठ्ठी के दरम्यान,कुछ तो करो मेहर सिंह जी ध्यान, ल्यो मेरा कहया मान, जिसकै घरां बहू जवान, ना रुसानी चाहिये सै,ख्याल करिये।
समझ कै कार करो इन्साफी, गल्ती होतै दियो माफी
पापी ना हो कमा खुषहाल, जिसनै नहीं बहू का ख्याल, जो देवे कानां पर को टाल, उनै देती दुनिसा गााल, ना खानी चाहिये सै, ख्याल करिये।
अपनी इज्जत खुद क्यूं खोवै, अगत के राह मैं कांटे बोवै
होवै या बीमार लाइलाज, जल्दी करदे किमै इलाज,होवै तनै बीर पै नाज
तूं तो गया फौज मैं भाज, बहू बुलानी चाहिये सै, ख्याल करिये।
बिना तेरे जवां उम्र ना कटती,इसमैं तेरी बी आबरु घटती,
डटती ना उठती जवानी,कर साजन मेहरबानी, मतना कर तूं मनमानी
कदे होज्या ना कोए नादानी, समझाानी चाहिये सै, ख्याल करिये।
कहूं रणबीर सिंह तैं डरकै,ध्यान सब उंच नीच पै धरकै
लिख कै बहू को दो बात, चिन्ता कम करो मेरे नाथ, मैं देउंगी थारा पूरा साथ
करकै घरां खूब खुभात,या दिखानी चाहिये से, ख्याल करिये।


                सिंघापुर मैं भारत की फौज घिर जाती है। चारों तरफ के रास्ते बन्द हो जाते हैं। मेहरसिंह लोगों का हौंसला बंधाता है। मगर एक दिन उसे अपने घर की याद आती है तो क्या सोचता है भला वह कवि के शब्दों में:
रागनी 18
टेक         सिंघापुर मैं फंस्या मेहरसिंह याद जाटणी आई।।
                मन मैं घूमै गाम बरोना रात काटणी चाही।।

                जर्मन और जापान फौज का बढ़ता आवै घेरा था
                भारत के फौजी भाई अंग्रेज फौज का डेरा था
                सिंघापुर काट्या दुनिया तै पुल काट कै गेरया था
                अंग्रेजी सेना भाज लई थी पीला पड़ग्या चेहरा था
                सुणा रागनी फौजी नै या फौज डाटणी चाही।।

                साथ रहणिये संग के साथी उसनै यो पैगाम दिया
                सिंघापुर मैं फौजी जितने सबका दिल फेर थाम दिया
                म्हारे साथ क्यों ऐसी बनरी अन्दाजा लगा तमाम दिया
                प्रेम कौर की याद सतावै ना फेर बी जिगर मुलाम किया
                चिन्ता आई जो दिल मैं तत्काल बांटणी चाही।।

                पड़े पड़े कै याद आया प्रेम कौर का वो फाग भाई
                मक्की की रोटी गेल्यां बणाया सिरसम का उनै साग भाई
                साहमी बैठ परोसी थाली बोल्या मुंडेरे पै काग भाई
                कुछ दिन पाछै भरती होग्या खींच लेग्या यो भाग भाई
                फिरया फिरंगी वायदा करकै झूठ चाटणी चाही।।

                तीजां का त्यौहार सतावै जामण उपर झूल्या
                गाम को गोरा दिख्या उसनै नहीं खेतां नै भूल्या
                प्रेम कौर की चिट्ठी आई ना गात समाया फूल्या
                रणबीर सिंह नै मेहर सिंह का हाल लिख्या सै खुल्या
                बणा रागनी फौजी की सब बात छांटणी चाही।।

                प्रेम कौर गांव में ही रहती रही। मेहरसिंह का कोई अता पता नहीं चल रहा था। युद्ध के बादल मंडरा रहे थे। उसका जिकर चलता मगर सब कुछ सुनकर चुप रहा जाती। मेहरसिंह की याद में वह क्या सोचती है भलाः
रागनी 19
टेक         तनै घणी सताई क्यों बाट दिखाई जमा निस्तरग्या निरभाग
                बोल्या बैठ मुंडेरे काग।।

                के बेरा तनै पिया जी मैं दिन काटूं मर पड़कै हो
                परेशानी दिन रात रहै मैं रोउं भीतर बड़कै हो
                तेरी फौज की नौकरी दखे कुणक की ढालां रड़कै हो
                राम जी नै किसा खेल रचाया सोचूं खाट मैं पड़कै हो
                कद छुट्टी आवै, मेरी आस बंधावै जो चाहवै मेरा हो सुहाग।।
                भूखी प्यासी रहकै घर मैं उमर गुजारुं फौजी मैं
                सपने के म्हां कई बै देकै बोल पुकारुं फौजी मैं
                निर्धनता बीमारी का क्या जतन बिचारुं फौजी मैं
                तीर मिलै तो तुक कोन्या कित टक्कर मारुं फौजी मैं
                रोज खेत कमाउं, बहोतै थक ज्याउं, रात की नींद मेरी जा भाग।।
                ज्यान बिघन मैं घलगी वुफएं जोहड़ मैं मनै मरना हो
                तेरी प्यारी प्रेम कौर नै ज्यान का गाला करना हो
                तेरी पलटन के कारण मैंने दुख बहोत घणा भरना हो
                आजादी मेरी शैतान होगी नहीं किसे का सरना हो
                यो अफसर तेरा, हुया बैरी मेरा, ईंकै लड़ियो जहरी काला नाग।।
                हार चाहे हो जीत म्हारी मैं कोन्या त्यार मरण खातिर
                सहम भरमते पषु फिरैं तेरा सुन्ना खेत चरण खातिर
                कदे तो थोड़ा बख्त काढ़ लिये मनै याद करण खातिर
                एक बर तो छुट्टी आज्या तूु मेरा पेटा भरण खातिर
                लिखै रणबीर ,ईब तेरी तहरीर , करै दुनिया के म्हां जाग।।
     

मेहरसिंह जिब अस्पताल में भरती होता हैै तो एक नर्स से बातचीत होती है। वह नर्स से उनके पेशे के बारे में बात करता है तो नर्स क्या बताती है भला:
रागनी 20
टेक         माणस की ज्यान बचावैं अपणी ज्यान की बाजी लाकै।।
                फेर बी सम्मान ना मिलता लिखदे अपणी कलम चलाकै।।

                मरते माणस की सेवा मैं हम दिन और रात एक करैं
                भुला दुख और दरद हंसती हंसती काम अनेक करैं
                लोग क्यों चरित्रहीन का तगमा म्हारे सिर पै टेक धरैं
                जिसी सम्भाल हम करती घर के नहीं देख रेख करें
                घर आली नै छोड़ भाजज्यां देखै बाट वा ऐड्डी ठाकै।।

                फ्रलोरैंस नाइटिंगेल नै नर्सों की इज्जत असमान चढ़ाई
                लालटेन लेकै करी सेवा महायुद्ध मैं थी छिड़ी लड़ाई
                कौण के कहवैगा उस ताहिं वा बिल्कुल भी नहीं घबराई
                फेर दुनिया मैं नर्सों नै या मानवता की थी अलख जगाई
                बाट देखते नाइटिंगेल की फौजी सारे ही मुंह बाकै।।

                करैं पूरा ख्याल बीमारां का फेर घर का सारा काम होज्या
                डाक्टर बिना बात डाट मारदे जल भुन काला चाम होज्या
                कहवैं नर्स काम नहीं करती चाहवै उसकी गुलाम होज्या
                मरीज बी खोटी नजर गेर दें खतम खुशी तमाम होज्या
                दुख अपणा फेर बतादे रोवां हम किस धौरै जाकै।।

                काम घणा तनखा थोड़ी म्हारा थारा शोषण होवै क्यों
                सारे मिल देश आजाद करावां फेर जनता रोवै क्यों
                बिना संगठन नहीं गुजारा जनता नींद मैं सोवै क्यों
                बूझ अंग्रेज फिरंगी तै यो बीज बिघन के बोवै क्यों
                रणबीर सिंह देवै साथ म्हारा ये न्यारे छन्द बणाकै।।
फागण का महीना था। मेहर सिंह का सभी घरवाले इन्तलार कर रहे थे कि अबकि बार तो फौजी जरुर छुट्टी आयेगा। होली का त्योहार मनाने का दिल था सबका। परन्तु मेहर सिंह को ऐन मौके पर छुट्टी से मना कर दिया जाता है। वह अच्छी तरह से सूचना भी झार पर नहीं दे पाता  िकवह नहीं पायेगा। प्रेम कौर क्या सोचती है भला.-
                                -21-
मनै पाट्या कोण्या तोल, क्यों करदी तनै बोल
नहीं गेरी चिट्ठी खोल, क्यों सै छुट्टी मैं रोल
मेरा फागण करै मखोल, बाट तेरी सांझ तड़कै।।
या आई फसल पकाई पै, या जावै दुनिया लाई पै
लागै दिल मेरे पै चोट, मैं ल्यूं क्यूकर इसनै ओट
सोचूं खाट के मैं लोट, तूं कित सोग्या पड़कै।।
खेतां मैं मेहनत करकै, रंज फिकर यो न्यारा धरकै
लुगाइयां नै रोनक लाई, कट्ठी हो बुलावण आई
मेरा कोण्या पार बसाई, तनै कसक कसूती लाई
पहली दुलहण्डी याद आई, मेरा दिल कसूता धड़कै।।
इसी किसी तेरी नौकरी, कुणसी अड़चन तनै रोकरी
अमीरां के त्योहार घणे सैं, म्हारे तो एकाध बणे सैं
खेलैं रलकै सभी जणे सैं, बाल्टी लेकै मरद ठणे सैं
मेरे रोंगटे खड़े तनै सैं, आज्या अफसर तै लड़कै।।
मारैं कोलड़े आंख मीचकै, खेलैं फागण जाड़ भींचकै
उड़ै आग्या था सारा गाम, पड़ै था थोड़ा घणा घाम
पाणी के भरे खूब ड्राम, दो तीन थे जमा बेलगाम
मनै लिया कोलड़ा थाम, मारया आया जो जड़कै।।
पहल्यां आली ना धाक रही, ना बीरां की खुराक रही
तनै मैं नई बात बताउं, डरती सी यो जिकर चलाउं
रणबीर पै बी लिखवाउं, होवे पिटाई हररोज दिखाउं
कुण कुण सै सारी गिणवाउं, नहीं खड़ी होती अड़कै।।



                मेहरसिंह ने देश पर ज्यान कुर्बान कर दी। उसकी आवाज में कसक थी। उसने भारत के सपूतों को ललकार कर जाग्रत किया। कैसे भला:
रागनी 22
टेक         मेहरसिंह नै ललकार दई थी, करकै सोच बिचार दई थी।
                एक नहीं सौ बार दई थी, जंजीर गुलामी की तोड़ दियो।।

                न्यूं बोलो सब कट्ठै होकै भारत माता जिन्दाबाद
                गाम बरोना देश हमारा गोरयां नै कर दिया बरबाद
                फिरंगी सैं धणे सत्यानासी, करक्े अपणी दूर उदासी
                लाइयो मतना वार जरा सी, मुंह तोपां का मोड़ दियो।।

                म्हारा होंसला करदे खूंडा उनका जो बढ़िया हथियार
                लक्षमी सहगल बीर मर्दानी ठाके खड़ी हुई तलवार
                मेहरसिंह नै दी किलकारी, देशप्रेम की ठा चिंगारी
                देश की माट्टी फेर पुकारी, कुर्बानी की लगा होड़ दियो।।

                नन्दराम पिता नै आर्यसमाज का झण्डा हाथ उठाया था
                पत्थर मतना पूजो लोगो यो असमान गुंजाया था
             लाया था सारे कै नारा, जुणास लागै हमनै प्यारा
                यो सै भारत देश म्हारा, सबके दिलां नै जोड़ दियो।।

                रोम रोम मैं छाज्या सबकै मेहर सिंह के बोलां का रंग
                आजाद हिन्द फौज चली जब अंग्रेज देख होग्या दंग
                रणबीर नै जंग तसबीर बनाई, हरीचन्द नै करी सफाई
                नई-नई कर कविताई, छंद लय सुर मैं जोड़ दियो।।

                देश पर कुर्बान होते हुए मेहरसिंह के दिल में शायद यही सन्देश था हमारे लिए:
रागनी 23
तर्ज         तेरे द्वार खड़ा एक जोगी
टेक         लियो मेहर सिंह का सलाम
                छोड़ चले हम देश साथियो तुम लियो मिलकै थाम
                देश छोड़ चाल पड़े रै, भरे अंग्रेजां के पाप घड़े रै
                                जनता जागगी सारी
                किसान संगठन खूब बनावैं, किते वकील सड़क पै आवैं
                                देश मैं उठी चिंगारी
                बढ़ती जा सै फौज म्हारी, लियो मान मेरा पैगाम।।
                म्हारे पाछे तै ख्याल राखियो, देश हवालै थारे साथियो
                                मतना तुम सो जाइयो
                देश की खातर लड़ो लड़ाई, कट्ठे होकै लागे लुगाई
                                गीत खुशी के गाइयो
                अंग्रेज नै मार भगाइयो, तज अपणा आराम।।
                पाबन्दी ना लगै जाट पै, गीत सुरीले गावै ठाठ तै
                                बीर मरद और जवान
                गीतां तै उठैगी झाल, कुर्बानी के हों न्यूं ख्याल
                                बणो भगतसिंह से महान
                भारत मां की बणो स्यान, लियो यू समझ हमारा काम।।
                बाबू नै दिया धक्का फौज में, न्यों सोचै था रहैगा मौज में
                                गए बदल उड़ै फेर ख्याल
                मनै खून द्यो तम भाई, आजादी द्यूं थारे ताहिं
                                सुभाष बतागे फिलहाल
                समझगे तत्काल मेहरसिंह, दियो रणबीर सर अन्जाम।।
     बीमार हो जाता है मेहर सिंह और मोर्चे से बरेली के अस्पताल में जाता है। इलाज के दोरान भी इसका दिमाग इसी पर काम करता रहा कि आजाद होने के बाद भारत किस तरह का होगा। उसको दुख था कि देष को बांटे जाने की साजिषें जोर पकड़ती जा रहीं थी। कवि ने कल्पना की है उस वक्त मेहर सिंह के दिमाग में चल रही रील की। क्या बताया भला-
                                                रागनी-24-
आस बंधी अक भोर होवैगी षोशण जारी रहै नहीं ।।
लोक राज तैं राज चलैगा रिष्वत बीमारी रहै नहीं ।।
रिष्वतखोर मुनाफाचोर की स्वर्ण तिजूरी नहीं रहै
चेहरा सूखा मरता भूखा इसी मजबूरी नहीं रहै
गरीब कमावै उतना पावै बेगार हजूरी नहीं रहै
षरीफ बसैंगे उत मरैंगे या झूठी गरुरी नहीं रहै
फूट गेर कै राज करो फेर इसी बीमारी रहै नहीं ।।
करजे माफ होज्यांगे साफ आवैगा दौर सच्चाई का
बेरोजगारी भता कपड़ा लता हो प्रबन्ध दवाई का
पैंषन होज्या सुख तैं सोज्या होवै काम भलाई का
जच्चा बच्चा होज्या अच्छा मौका मिलै पढ़ाई का
मीठा पाणी चालै नल में यो पाणी खारी रहै नहीं।।
भाई चारा सबतैं न्यारा नहीं कोए धिंगताना हो
बदली खातिर ठाकै चादर ना मंत्री पै जाना हो
हक मिलज्या घीसा घलज्या सबनै ठौर ठिकाना हो
सही वोट डलैं ना नोट चलैं इसा ताना बाना हो
हम सबनै संघर्श चलाया अंग्रेज अत्याचारी रहै नहीं।।
पड़कै सोज्यांगे चाले होज्यांगे नहीं कुछ बी होवैगा
माथा पकड़ कै भीतर बड़कै फेर बूक मारकै रोवैगा
नया मदारी करैगा हुष्यारी हमनै बेच के सोवेगा
चैकस रहियो मतना सोइयो काटैगा जिसे बौवैगा
रणबीर सिंह बरोने आला कितै दरबारी रहै नहीं।।


                प्रेम कौर का आज हम सबको यही सन्देश है कि फौजी मेहरसिंह ने देश प्रेम, देश सेवा इन्सानियत का जो रास्ता चुना था, आज हमारे देश पर फिर से काले बाद मंडरा रहे हैं, हमें उसी रास्ते पर आगे बढ़ना होगा। कवि के शब्दों में:
रागनी -25-
टेक         सन ब्यालीस मैं हे फौजी नै दई सिंघापुर मैं ललकार।।
                न्यों बोल्या द्यो साथ बोस का ठाकै हाथों मैं हथियार।।

                जुल्म ढाये गोरयां नै करे जारी काले फरमान आड़ै
                भगतसिंह से फांसी तोड़े लूटे म्हारे अरमान आड़ै
                गान्धी आगै औछे पड़गे ये ब्रिटेन के इन्सान आड़ै
                म्हारे देश के बच्यां की खोसी क्यों मुसकान आड़ै
                ठारा सौ सतावण मैं चाली हे उदमी राम की तलवार।।

                देख जुल्म अंग्रेजां के लग्या फौजी कै झटका सुणियो
                भरके नै यो फूट गया उनके पापां का मटका सुणियो
                बंदरबांट देख गोरयां की होया उसके खटका सुणियो
                एक बै बढ़े पाछै फर ना उसनै खाया लटका सुणियो
                सन पैंतीस मैं भरती होग्या छोड़ गाम की मौज बहार।।

                गुलाम देश का मतलब के न्यों पूरा गया पकड़ फौजी
                देश आजाद कराना घणा जरूरी न्यों गया अकड़ फौजी
                बुझी चिंगारी सुलगाके नै बाल गया यो भकड़ फौजी
                देश प्रेम की बना रागनी न्यों तोड़ गया जकड़ फौजी
                जाट का होके तूं गावै रागनी ना भूल्या बाबू की फटकार।।

                लखमी दादा नै सांग करया गाम बरोने मैं एक रात सुणो
                पदमावत के किस्से मैं दोनां की थी मुलाकात सुणो
                कद का देखूं बाट घाट पै तेरे आवण की या बात सुणो
                माणस आवण की बात बणाई कर तुरत खुभात सुणो
                स्टेज पै बुला दादा लखमी नै रणबीर करया भूल सुधार।।

                मेहर सिंह की मौत के बारे में कई तरह की बातें चरचा में हैं। उसके दोस्तों ने घर सन्देश भेज दिया। उसके परिवार वालों को बहुत सदमा पहुंचा। प्रेम कौन चुपचाप बैठी रहने लगी। एक दिन क्या सोचती है भला:
रागनी 26
टेक         जाल तोड़कै नै लिकड़ गया होग्या तूं आजाद पिया।।
                साथ रहनियां संग के साथी करै हरियाणा याद पिया।।

                जालिम और गुण्डे जनता नै नोच नोच कै खावैं
                रिश्वतखोरी बाधू होरी ये कति नहीं शरमावैं
                धनवानां की करैं चाकरी कमेरयां नै धमकावैं
                के न्यों काढ़े अंग्रेज हमनै अक देशी लूट मचावैं
                बेइमानां की चान्दी होरी सुनते ना फरियाद पिया।।

                सारे देश मैं रुक्का पड़ग्या चैगरदें नै होग्या शोर
                मेहनत म्हारी खोस लई उल्टा हमनै बतावैं चोर
                तख्त राज का डोलै सै रौल्ला माच रया चारों और
                तनै गा गा के धनवान बणे करते कोण्या मेरी गोर
                चूल हिलादी उसकी जो धरी तनै बुनियाद पिया।।

                तेरी रागनी टोहवण आज्यां मेरा किसे नै ख्याल नहीं
                तेरी दमयन्ती दुखी फिरै किसे कै भी मलाल नहीं
                असली बात भूलगे तेरी इसतै बडडा कमाल नहीं
                सारा गाम तनै याद करै टूटया मोह का जाल नहीं
                हरया भरया था गाम बरोना होता जा बरबाद पिया।।

                आम सरोली पेड़ काट दिये काली जाम्मण सूक गई
                गाम छोड़गे घणे जणे तो वुफछ नै मार या भूख गई
                तेरी बुआ तो अपफसार बणगी बढ़िया बणा रसूक गई
                बालकपन मैं अनपढ़ रैहगी रणबीर मौका चूक गई
                तेरी रागनी कररी सैं मेरा सूना मन आबाद पिया।।









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