1927 : साइमन कमीशन का बहिष्कार, भारत में प्रसारण की शुरुआत
1928 : लाला लाजपतराय की मृत्यु (शेर-ए-पंजाब)
1929 : लॉर्ड ऑर्वम समझौता, लाहौर कांग्रेस में पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पास
1930 : सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत- महात्मा गांधी द्वारा दांडी मार्च (अप्रैल 6, 1930)
1931 : गांधी-इर्विन समझौता
1935 : भारत सरकार अधिनियम पारित
1937 : प्रांतीय स्वायतता, कांग्रेस मंत्रियों का पदग्रहण, अम्ग्रेजों ने बर्मा को भारत से अलग कर दिया।
1941 : रबीन्द्रनाथ टैगोर की मृत्यु, भारत से सुभाष चंद्र बोस का पलायन
1942 : क्रिप्स मिशन के भारत आगमन पर भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत
1943-44 : नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने प्रांतीय आजाद हिंदू हुकूमत, भारतीय राष्ट्रीय सेना की स्थापना की और बंगाल में अकाल
1945 : लाल किले में आईएनए का ट्रायल, शिमला समझौता और द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति
1946 : ब्रिटिश कैबिनेट मिशन की भारत यात्रा- केंद्र में अंतरिम सरकार का गठन
कवि फ़ौजी मेहर सिंह किसान कम पढ़ा लिखा और कम उम्र
जीवन के बारे दुसरे महानुभाव लिख रहे हैं | यहाँ फोकस उनकी रचनाशीलता पर ही रखने की कोशिश की जा रही है |
शहीद फौजी किसान कवि और गायक मेहर सिंह
फौजी मेहरसिंह गांव बरोने का रह ने वाला था।फौजी मेहरसिंह किसान परिवार में बरोना गांव में पै दा हुआ। इस इलाके के मषहूर गावों में से एक गांव है बरोना। जिन् दगी की सच्चाईयों से उसका रोजा ना सामना होता था। वह मेहनती था । गरीब परिवार से था। गाता बहुत अच्छा था।उसकी लिखी हुई बातें तो सब सुनते हैं मगर उसकी जिन् दगी के बारे में लोगों को बहुत कम पता है। उसमें देशप्रेम बहुत गहरा था यह बात बहुत कम लोगों की जानकारी में है। मेहर सिंह ही उस दौर का ऐसा व्यक्तित्व है जो किसान है,कवि है और फौजी भी है । जो उस दौर में छुआछूत के खिला फ भी संवेदनशील है|
फौजी मेहरसिंह को गाणे बजाणे का बड़ा शौक था। रात को गाता तो ब हुत से लोग सुनने आ बैठते। मे हरसिंह को हुक्का बिगाड़ कहा जा ता था मतलब वह हर जात का हुक्का पी लेता था। मेहर सिंह का पिता आर्य समाजी था। उसे मेहरसिंह का गाना बजाना पसन्द नहीं था। कई बार मना किया और एक दिन तो पिता ने गुस्से में भरकर सांटा उठा लिया उसकी पिटाई करने के लिए। भ ले ही आर्य समाज इस इलाके में दे र से आया मगर इसका प्रभाव यहां के सामाजिक सांस्कृतिक जीवन पर पड़ा। आर्य समाज ने षिक्षा के प्र सार का काम किया और महिला षिक् षा पर भी काफी जोर दिया। मगर को एजुकेषन का विरोध किया। इसी प् रकार सांगों का भी विरोध हुआ।
एक बार मेहर सिंह स्मारक समिति के लोग गांव की चैपाल में बैठ क र उसके जीवन पर चर्चा कर रहे थे । उसकी रचनाओं की किताब प्रकाषि त करने की योजना बनी। उसके बारे में कुछ जानकारी लेने के लिए मे हर सिंह की भाभी को चैपाल में बु ला लिया और मैने उससे प्रार्थना कि की वह मेहर सिंह के जीवन की कुछ खास बातें बताए। उसकी भाभी ने बताया कि मेहरु मैं तो दो अ वगुण थे। सुनकर वहां बेठे सभी लो गों को थोड़ा झटका सा लगा। मैं ने भी दो सैकिन्डके लि सोचा और फिर कहा कि बताओ तो सही वो दो अ वगुण क्या थे। भाभी ने बताया कि एक तो वह हुक्का बिगाड़ था। जि सके यहां जाता उसी का हुक्का पी लिया करता। ;उन दिनों अछूत इतनी थी कि अलग अलग जातों के अपने हुक्के होते थे । सुनकर मुझे कु छ राहत मिली। मैंने फिर पूछा दू सरा अवगुण क्या था? उसने बताया कि कई गांव व गुहांड के मुसलमा नों के यहां उसकी बड़ी पक्की या री दोस्ती थी। फौजी मेहर सिंह के ये दो ‘अवगुण’ सुनकर बहुत अच् छा लगा। और यह और भी अच्छा लगा कि यह अवगुण 50-60 लोगों के बीच चैपाल में सामने आये। मेरे को मेहर सिंह पर काम करने का इन विचारों से बहुत प्रोहत्सान मिला | मेहर सिंह का परिवार एक सामा न्य गरीब किसान परिवार था। अपने परिवार के आर्थिक कारणें के चल ते मेहर सिंह फौज में भरती हो जा ता है। जाने से पहले उसकी पत्नी प्रेम कौर उसको दिल की बात बता ती है। उसे फौज में जाने से मना करती है।आपस में बहस होती है। सवाल जवाब होते हैं-
करुं बिनती हाथ जोड़ कै मतना फौ ज मैं जावै।।
मुश्किल तैं मैं भरती होया तूं मतना रोक लगावै।।-----------
कहतें हैं मुसीबतें तन्हाा नहीं आती। 1936 .37 में इस सारे क्षेत्र में ग न्ने की सारी फसल पायरिला की बी मारी ने बरबाद कर दी- गन्ने से गुड़ नहीं बना और राला एक से दो रुपये मन के हिसाब से बेचना पड़ा । इस प्रकार जमींदार बरबाद हो ग ये। इसी बीमारी के डर से अगले सा ल गन्ना बहुल कम बोया। इसी समय भयंकर अकाल भी पड़े थे इस इलाके में। प्रथम महायुद्ध में इस क् षेत्र से काफी लोग फौज में गये थे। इसके बाद सन् 35 के आस पास मेहर सिंह पर भी घर के हालात को देखते फौज में भरती होने का दबा व बना। सही सही साल तो नहीं बता पाये लोग मगर 35-37 के बीच ही मेहर सिंह फौज में भरती होता है । मेहरसिंह जब फौज में जाने लगता है तो प्रेम कौर रोने लगती है। मेहरसिंह का दिल भर आता है। वह अपने मन को काबू में करके प्रे म कौर को समझाता है। क्या बताया भला:
रौवे मतना प्रेम कौर मैं छुट् टी तावल करकै आ ल्यूंगा।।
थोड़े दिन की बा त से प्यारी फौज मैं तनै बुला ल्यूं गा।।--------
मेहर सिंह फौज में चला गया। मा हौल पूरी दुनिया में संकट का दौ र था। दूसरे महायुद्ध के बादल मु डरा रहे थे। इधर मेहर सिंह की लि खी रागनियां लोगों बीच जाने लगी थी। मेहरसिंह की बनाई रागनी प् रेम कौर सुनती है।
मेहर सिंह को दूसरे फौजियों से अकाल के बारे में पता लगता है। बताते हैं कि किसानों की हालत ब हुत कमजोर हो चली थी। खाने के ला ले पड़ने लगे थे। खुद भी वह गाँव के हालत से प्रभावित था | वह ये बातें सोचता है और किसान पर कई रागनी बनाता है।
मेहरसिंह को फौज में बहुत सी बा तों का पता लगता है। कहते हैं देश को आजाद करवाने के लिए फौज में एक खुफिया संगठन था। मे जर जयपाल इसका नेता था। इसी सं गठन का एक फौजी असलम मेेहरसिंह से मिलता है। गांव में भी मुस् लिम परिवारों से मेहरसिंह की दो स्ती थी। बहुत सी बातें होती हैं । मेहसिंह उसके कहने पर किसानों पर एक रागनी बनाता है। क्या कह ता है भला:
एक बख्त इसा आवैगा ईब किसान ते रे पै।
राहू केतू बणकै चढ़ज्यां ये धनवान तेरे पै।।-- ---------
तीजों का त्यौहार आ जाता है। छु ट्टी मिली नहीं। जनमानस में यह हरियाली तीज के नाम से जानी जा ती है। यह मुख्यत: स्त्रियों का त्योहार है। इस समय जब प्रकृति चारों तरफ हरियाली की चादर सी बिछा देती है तो प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित होकर ना च उठता है। जगह.जगह झूले पड़ते हैं। स्त्रियों के समूह गीत गा. गाकर झूला झूलते हैं। मेरे ख्याल में मेहरसिंह को रात को सपना आता है और देखता है कि प्रेम कौर ती ज झूलने जा रही है। क्या देखता है भला:
लाल चूंदड़ी दामण काला, झूला झू लण चाल पड़ी।
कूद मारकै चढ़ी पींग पै देखै सहेली साथ खड़ी।। ---------
मेहर सिंह को अपनी मां से बड़ा प्यार था। बचपन में बड़ी लोरी सु णाया करती थी। एक दिन फौजी सिं घापुर के बाजार में जा रहा था ।
कुछ महिलाएं अपने बच्चों के सा थ बाजार में दिखाई देती हैं फौ जी मेहर सिंह को अपनी मां की या द आ जाती है। तो मां के बारे में सोचने लगता है। तेरी छाती का पि या हुआ ना मनै दूध लजाया री।लोरी दे दे कही बात तनै केहरी शेर बणाया री ।
सिंघापुर मैं भारत की फौज घिर जा ती है। चारों तरफ के रास्ते बन् द हो जाते हैं। मेहरसिंह लोगों का हौंसला बंधाता है। कहते हैं कि मेहर सिंह ने रागनी गा कर फौजियों की होंसला अफजाई की थी|
देश पर कुर्बान होते हुए मेहरसिं ह के दिल में शायद यही सन्देश था हमारे लिए:
लियो मेहर सिंह का सलाम
छोड़ चले हम दे श साथियो तुम लियो मिलकै थाम--- -------
रणबीर सिंह दहिया
हरियाणा की लोक रचनाओं में बहुत विविधता देखने को मिलती है जिसमें समय समय पर अलग अलग लेखकों , कवियों , संगियों और साहित्यकारों ने अपनी रागनियों , लोक कथाओं , सांगों , टोटकों , चुटकुलों , कहानियों के माध्यम से अपनी रचनाशीलता की अभिव्यक्ति की है | बहुत से क्षेत्रों का समीक्षात्मक अवलोकन भी होना बाकी है | इसी संदर्भ में यदि मेहर सिंह जी की रचनाओं को देखा जाये तो इतनी कम उम्र में गाणा तो समझ में आता है लेकिन इतने किस्से और फुटकर रागनियों की रचना करना अपने आप में एक मेहनत की और बड़ी बात नजर आती है | फ़ौज में पंडित कृष्ण चन्दर और फौजी मेहर सिंह इकट्ठे रहे थे | इस बारे में पंडित कृष्ण चन्दर नादान सिसाना जी द्वारा एक बार एक कार्यशाला में बताता कि मेहर सिंह को रागनी किस्से तैयार करने की जबरदस्त धुन्न थी | एक बार उनकीं पल्टन एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा रही थी तो मेहर सिंह रास्ते में एक केले के बाग़ में केले के पेड़ के निचे बैठा हुआ था , पल्टन की टुकड़ी आगे जा चुकी , पंडित जी ने देखा पता नहीं मेहर सिंह वहां बैठा क्या कर रहा है | जाकर कहा चलो पल्टन तो जाली | मेहर सिंह बोले पंडित जी दो मिनट -- बस एक रागनी की दो लाइन बचरी हैं , पूरी कर लेने दो |
दूसरा खास बात यह भी है कि उनको गाने बजाने का शोक बचपन से ही था और रजबाहे के पुल पर बैठ कर गाया करते बिना पूरे साज बाज के | यार दोस्त बुला कर ले जाते थे सुनने के लिए |
खैर उनकी रचनाओं पर जाने से पहले कुछ आम बातें हैं मेरे दिमाग में उनकी रचनाओं के बारे | हालाँकि मेरी कोई ज्यादा अकादमिक जानकारी नहीं फोक के बारे में | एक बात तो जो मुझे नजर आती है वह यह है कि मेहर सिंह जी की रचनाओं मैं 30 से 45 के दौर का यथार्थ कहीं न कहीं किसी न किसी रूप झलकता है |
उस दौर के इस क्षेत्र के जन मानस की जिंदगी के बारे उनकी जानकारियां खासकर किसान और जवान के जीवन के बारे और मुस्लिम समुदाय के बारे में काफी गहरापन बहुत सादे पन के साथ अभिव्यक्ति पाती नजर आती हैं | जवान के घर की खासकर उसकी पत्नी की विरह की अभिव्यक्ति फुटकर रागनियों में और अंजना पवन के किस्से में बहुत ही संवेदनशीलता के साथ दिखाई देती है | अंजना पवन के किस्से में बतौर रचनाकार मेहर सिंह जी अंजना के साथ वैचारिक रूप से खड़े दिखाई देते हैं | उनकी रचनाओं में नारी का विवरण एक उस दौर की भारतीय नारी को रेखांकित करता है | इनमें शारीरिक प्रदर्शन के स्थान पर उनकी सादगी, पवित्रता और साधारण आकर्षण प्र्दशन ही लोगों को उनकी तरफ खींचता है | उनके श्रृंगार भी एक खास बात है कि इन रागनियों का गायन पूरे परिवार में होता रहता है | एक बात और गौर करने की है कि फ़ौज में होने के चलते उनकी अपनी हरयाणवी भाषा के साथ साथ दूसरी भाषाओँ शब्द भी इस्तेमाल किये गए हैं जैसे उर्दू , पंजाबी , पश्तो , बंगाली और अंग्रेजी |
मेहर सिंह जी के पिता जी आर्य समाजी थे और वे नहीं चाहते थे कि उनका बेटा रागनी गायक बने या सांगों की रचना करे | काफी तना तनी रहती थी परिवार में | मगर यह कबीले तारीफ बात है कि पिता और पुत्र के इस वैचारिक द्वंद के बीच विकास हुआ जवान किसान कवी मेहरसिंह जी का और एक स्तर की बुलंदियों तक पहुंचा है | बड़ी मुश्किल परिस्थितियों के बीच ही उन्होंने अपने सुर ,बुद्धि और ज्ञान के भण्डार को आहिस्ता आहिस्ता बहुत आगे तक विकसित किया जो उनके साँगों की रचना में और फुटकर रागनियों में भली भांति फलीभूत हुआ नजर आता है | उन्होंने 13 लगभग सांगों की रचना की बताते हैं और 70 के लगभग फुटकर रागनियों की | रचना धर्मिकता की बारीकियों के बारे तो मेरी जानकारियों की सीमा है मगर यह बात दिखाई देती है कि इसमें अहंकार कहीं भी नहीं झलकता नजर आता है | ठेठ हरयाणवी के प्रतिबिम्बों के साथ वाणी में मधुरता और नम्रता भी है |
फ़ौजी मेहर सिंह गाँव बरोणा के रहने वाले थे | फौजी सिंह किसान परिवार में बरोणा गाँव में पैदा हुए | जिंदगी की की सच्चाइयों से उनका रोजाना सामना होता था | उनकी लिखी हुई और गाई हुई बातें तो सब सुनते हैं मगर उनके जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी है | दो हरफी बात है कि उस दौर के मेहर सिंह जी ही ऐसे व्यक्तित्व हैं जो किसान है , कवी है और शहीद फौजी भी है |
मेहर सिंह जी के जीवन पर मैंने एक किस्सा लिखने की कोशिश की उसी के संदर्भ से उनके जीवन के बारे कुछ बातें और ---
मेहर सिंह जी के पिता जी आर्य समाजी थे और वे नहीं चाहते थे कि उनका बेटा रागनी गायक बने या सांगों की रचना करे | काफी तना तनी रहती थी परिवार में | मगर यह कबीले तारीफ बात है कि पिता और पुत्र के इस वैचारिक द्वंद के बीच विकास हुआ जवान किसान कवी मेहरसिंह जी का और एक स्तर की बुलंदियों तक पहुंचा है | बड़ी मुश्किल परिस्थितियों के बीच ही उन्होंने अपने सुर ,बुद्धि और ज्ञान के भण्डार को आहिस्ता आहिस्ता बहुत आगे तक विकसित किया जो उनके साँगों की रचना में और फुटकर रागनियों में भली भांति फलीभूत हुआ नजर आता है | उन्होंने 13 लगभग सांगों की रचना की बताते हैं और 70 के लगभग फुटकर रागनियों की | रचना धर्मिकता की बारीकियों के बारे तो मेरी जानकारियों की सीमा है मगर यह बात दिखाई देती है कि इसमें अहंकार कहीं भी नहीं झलकता नजर आता है | ठेठ हरयाणवी के प्रतिबिम्बों के साथ वाणी में मधुरता और नम्रता भी है |
फ़ौजी मेहर सिंह गाँव बरोणा के रहने वाले थे | फौजी सिंह किसान परिवार में बरोणा गाँव में पैदा हुए | जिंदगी की की सच्चाइयों से उनका रोजाना सामना होता था | उनकी लिखी हुई और गाई हुई बातें तो सब सुनते हैं मगर उनके जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी है | दो हरफी बात है कि उस दौर के मेहर सिंह जी ही ऐसे व्यक्तित्व हैं जो किसान है , कवी है और शहीद फौजी भी है |
मेहर सिंह जी के जीवन पर मैंने एक किस्सा लिखने की कोशिश की उसी के संदर्भ से उनके जीवन के बारे कुछ बातें और ---
चिंतनशील , आजाद कवि मुंशी राम और पंडित कृष्ण चंद्र नादान आदि
प्रमुख कवि हुए हैं।
1 पद्मावत, 2 जगदेव बीरमति, 3 पूर्णमल सुंदरादे, 4 चाप सिंह, 5 रूप बसंत और 6 काला
चाँद ।7 हरिश्चंद्र 8 सत्यवान सावित्री 9 अंजना पवन 10 सरवर नीर,,11 वीर हकीकत राय ,, 12 सुभाष चन्दर बोस 13 अनबोल दे | राजा नल की कुछ रागनी ,गजनादे , सेठ तारा चंद , चंद किरण , महाभारत ,नौटंकी
मुक्तक
जाट्टू शब्द हैं ! इसके आलावा अरबी ,फ़ारसी , उर्दू , तुर्की , पश्तो , पंजाबी , बंगाली और
इंग्लिश
बेहद विषम परिस्थितियां होते हुए भी
अपनी गायन व काव्य प्रतिभा को ना केवल ऊंचा उठाया बल्कि अपना नाम अपनी गायन व काव्य
शैली से जन जन के अंदर समाहित कर दिया।
पिता और पुत्र के इस वैचारिक द्वंद
के बीच जन्म हुआ उस मेहरसिंह का
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