बुधवार, 15 जनवरी 2020

किसान , कवि और शहीद फ़ौजी मेहर सिंह

                 किसान ,  कवि  और शहीद फ़ौजी मेहर सिंह                        
हरियाणा की लोक रचनाओं में बहुत विविधता देखने को मिलती है जिसमें समय समय पर अलग अलग लेखकों , कवियों , संगियों और साहित्यकारों ने अपनी रागनियों , लोक कथाओं , सांगों , टोटकों , चुटकुलों , कहानियों के माध्यम से  अपनी रचनाशीलता की अभिव्यक्ति की है |  बहुत से क्षेत्रों का  समीक्षात्मक अवलोकन भी होना बाकी  है | इसी संदर्भ में  यदि  मेहर सिंह जी की रचनाओं को देखा जाये तो  इतनी कम उम्र में गाणा तो समझ में आता है लेकिन इतने किस्से और फुटकर रागनियों की रचना करना अपने आप में एक मेहनत  की  और  बड़ी बात नजर आती है |  फ़ौज में पंडित कृष्ण चन्दर और फौजी मेहर सिंह इकट्ठे रहे थे |  इस बारे में पंडित कृष्ण चन्दर नादान सिसाना जी द्वारा एक बार एक कार्यशाला में बताता कि मेहर सिंह को रागनी किस्से तैयार करने की जबरदस्त धुन्न थी | एक बार उनकीं पल्टन एक स्थान से दूसरे  स्थान पर जा रही थी तो मेहर सिंह रास्ते  में एक केले के बाग़ में केले के पेड़ के निचे बैठा हुआ था  , पल्टन की टुकड़ी आगे जा चुकी , पंडित जी ने देखा पता नहीं मेहर सिंह वहां बैठा क्या कर रहा है |  जाकर कहा चलो पल्टन तो जाली |  मेहर सिंह बोले पंडित जी दो मिनट -- बस एक रागनी की दो लाइन बचरी हैं , पूरी कर लेने दो | 

                     दूसरी  खास बात यह भी है कि उनको  गाने बजाने का शोक बचपन से ही था और रजबाहे के पुल पर बैठ कर गाया करते  बिना पूरे साज बाज के |   यार दोस्त बुला कर ले जाते थे सुनने के लिए | 
खैर उनकी रचनाओं पर जाने से पहले कुछ आम बातें हैं मेरे दिमाग में उनकी रचनाओं के बारे |  हालाँकि मेरी कोई ज्यादा अकादमिक जानकारी नहीं फोक के बारे में | एक बात तो जो मुझे नजर आती है वह यह  है कि मेहर सिंह जी की रचनाओं मैं 30 से 45 के दौर का यथार्थ कहीं न कहीं किसी न किसी रूप  झलकता है | 
उस दौर के इस क्षेत्र के जन मानस की जिंदगी के बारे उनकी जानकारियां खासकर किसान और जवान के जीवन के  बारे और मुस्लिम समुदाय के बारे में काफी गहरापन बहुत सादे पन के साथ अभिव्यक्ति पाती नजर आती हैं | 
                     जवान के घर की खासकर उसकी पत्नी की विरह की अभिव्यक्ति फुटकर रागनियों में और अंजना पवन के किस्से में बहुत  ही संवेदनशीलता के साथ दिखाई देती है | अंजना पवन के किस्से में बतौर रचनाकार मेहर सिंह जी अंजना के साथ वैचारिक रूप से खड़े दिखाई देते हैं | उनकी रचनाओं में नारी का विवरण एक  उस दौर की भारतीय नारी को रेखांकित करता है |  इनमें शारीरिक प्रदर्शन के स्थान पर उनकी सादगी, पवित्रता और साधारण आकर्षण प्र्दशन ही लोगों को उनकी तरफ खींचता है | उनके श्रृंगार  भी एक खास बात है कि इन रागनियों का गायन पूरे परिवार में होता रहता  है |  एक बात और गौर करने की है कि फ़ौज में होने के चलते उनकी अपनी हरयाणवी भाषा के साथ साथ दूसरी भाषाओँ  शब्द भी इस्तेमाल किये गए हैं जैसे उर्दू , पंजाबी , पश्तो , बंगाली और अंग्रेजी | एक बार  चर्चा में एक बुजुर्ग ने बताया कि मेहर सिंह जी  महज होठों से न गाकर छाती से गाते थे और सुर चढ़ता जाता था | 
                   मेहर सिंह जी  के  पिता जी आर्य समाजी थे और वे नहीं चाहते थे कि उनका बेटा रागनी गायक बने या सांगों की रचना करे |   काफी तना तनी रहती थी परिवार में | मगर यह कबीले तारीफ बात है कि पिता और पुत्र के इस वैचारिक द्वंद के बीच विकास  हुआ जवान किसान कवी मेहरसिंह जी का और एक स्तर की बुलंदियों तक पहुंचा है | बड़ी मुश्किल परिस्थितियों  के बीच ही उन्होंने अपने सुर ,बुद्धि और ज्ञान के भण्डार को आहिस्ता आहिस्ता बहुत आगे तक विकसित किया जो उनके साँगों  की रचना में और फुटकर रागनियों में भली भांति फलीभूत हुआ नजर आता है | उन्होंने  13  लगभग सांगों की रचना की बताते हैं और 70 के लगभग फुटकर रागनियों की | रचना धर्मिकता की बारीकियों के बारे तो मेरी जानकारियों की सीमा है मगर यह बात  दिखाई देती है कि इसमें अहंकार कहीं भी नहीं झलकता नजर आता है |  ठेठ हरयाणवी के प्रतिबिम्बों के साथ वाणी में मधुरता और नम्रता भी है | 
   फ़ौजी मेहर सिंह गाँव बरोणा के रहने वाले थे | फौजी सिंह किसान परिवार में बरोणा गाँव में पैदा हुए |  जिंदगी की  की सच्चाइयों से उनका रोजाना सामना होता था | उनकी लिखी हुई और गाई हुई बातें तो सब सुनते हैं मगर उनके जीवन के बारे में बहुत कम  जानकारी है |  दो हरफी बात है कि उस दौर के मेहर सिंह जी ही ऐसे व्यक्तित्व हैं जो किसान है , कवि  है और शहीद फौजी भी है | 
 मेहर सिंह जी के जीवन पर मैंने एक किस्सा लिखने की कोशिश की उसी के संदर्भ से उनके जीवन के बारे कुछ बातें और ---
अपने परिवार के आर्थिक कारणें के चलते मेहर सिंह फौज में भरती हो जाता है। जाने से पहले उसकी पत्नी प्रेम कौर उसको दिल की बात बताती है। उसे फौज में जाने से मना करती है।आपस में बहस होती है। सवाल जवाब होते हैं-

करुं बिनती हाथ जोड़ कै मतना फौज मैं जावै।।
मुश्किल  तैं मैं भरती होया तूं मतना रोक लगावै।।-----------

कहतें हैं मुसीबतें तन्हाा नहीं आती। 1936 .37 में इस सारे क्ष्ेत्र में गन्ने की सारी फसल पायरिला की बीमारी ने बरबाद कर दीगन्ने से गुड़ नहीं बना और राला एक से दो रुपये मन के हिसाब से बेचना पड़ा। इस प्रकार जमींदार बरबाद हो गये। इसी बीमारी के डर से अगले साल गन्ना बहुल कम बोया। इसी समय भयंकर अकाल भी पड़े थे इस इलाके में। प्रथम महायुद्ध में इस क्षेत्र से काफी लोग फौज में गये थे। इसके बाद सन् 35 के आस पास मेहर सिंह पर भी घर के हालात को देखते फौज में भरती होने का दबाव बना। सही सही साल तो नहीं बता पाये लोग मगर 35-37 के बीच ही मेहर सिंह फौज में भरती होता है। मेहरसिंह जब फौज में जाने लगता है तो प्रेम कौर रोने लगती है। मेहरसिंह का दिल भर आता है। वह अपने मन को काबू में करके प्रेम कौर को समझाता है। क्या बताया भला:
                 रौवे मतना प्रेम कौर मैं छुट्टी तावल करकै  ल्यूंगा।।

                थोड़े दिन की बात से प्यारी फौज मैं तनै बुला ल्यूंगा।।--------
मेहर सिंह फौज में चला गया। माहौल पूरी दुनिया में संकट का दौर था। दूसरे महायुद्ध के बादल मुडरा रहे थे। इधर मेहर सिंह की लिखी रागनियां लोगों बीच जाने लगी थी। मेहरसिंह की बनाई रागनी प्रेम कौर सुनती है।

मेहर सिंह को दूसरे फौजियों से अकाल के बारे में पता लगता है। बताते हैं कि किसानों की हालत बहुत कमजोर हो चली थी। खाने के लाले पड़ने लगे थे। खुद भी वह गाँव के हालत से प्रभावित था |  वह  ये बातें सोचता है और किसान पर कई  रागनी बनाता है।

मेहरसिंह को फौज में बहुत सी बातों का पता लगता है। कहते हैं देश को आजाद करवाने के लिए फौज में एक खुफिया संगठन था। मेजर जयपाल इसका नेता था। इसी संगठन का एक फौजी असलम मेेहरसिंह से मिलता है। गांव में भी मुस्लिम परिवारों से मेहरसिंह की दोस्ती थी। बहुत सी बातें होती हैं। मेहसिंह उसके कहने पर किसानों पर एक रागनी बनाता है। क्या कहता है भला:
                एक बख्त इसा आवैगा ईब किसान तेरे पै।
                राहू केतू बणकै चढ़ज्यां ये धनवान तेरे पै।।-----------

तीजों का त्यौहार  जाता है। छुट्टी मिली नहीं। जनमानस में यह हरियाली तीज के नाम से जानी जाती है। यह मुख्यत: स्त्रियों का त्योहार है। इस समय जब प्रकृति चारों तरफ हरियाली की चादर सी बिछा देती है तो प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित होकर नाच उठता है। जगह.जगह झूले पड़ते हैं। स्त्रियों के समूह गीत गा.गाकर झूला झूलते हैं। मेरे   ख्याल में मेहरसिंह को रात को सपना आता है और देखता है कि प्रेम कौर तीज झूलने जा रही है। क्या देखता है भला:
               लाल चूंदड़ी दामण कालाझूला झूलण चाल पड़ी।
                कूद मारकै चढ़ी पींग पै देखै सहेली साथ खड़ी।।---------
मेहर सिंह को अपनी मां से बड़ा प्यार था। बचपन में बड़ी लोरी सुणाया करती थी। एक दिन फौजी सिंघापुर के बाजार में जा रहा था 
 कुछ महिलाएं अपने बच्चों के साथ बाजार में दिखाई देती हैं फौजी मेहर सिंह को अपनी मां की याद  जाती है। तो मां के बारे में सोचने लगता है। तेरी छाती का पिया हुआ  ना  मनै दूध लजाया री।लोरी दे दे कही बात तनै केहरी शेर बणाया री।
सिंघापुर मैं भारत की फौज घिर जाती है। चारों तरफ के रास्ते बन्द हो जाते हैं। मेहरसिंह लोगों का हौंसला बंधाता है। कहते हैं कि मेहर सिंह ने रागनी गा कर फौजियों की होंसला अफजाई की थी| 

देश पर कुर्बान होते हुए मेहरसिंह के दिल में शायद यही सन्देश था हमारे लिए:

                 लियो मेहर सिंह का सलाम
                छोड़ चले हम देश साथियो तुम लियो मिलकै थाम----------
रणबीर सिंह दहिया 



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