किस्सा झलकारी बाई
लेखकः रणबीर सिंह
दहिया
न धर्म
रक्षा और न
जाति रक्षा झलकारी
ने चूड़ियां पहनना
छोड़ देश रक्षा
के लिये बन्दूक
हाथ में ले
ली थी। उसे
न महल चाहिये
थे न कीमती
जेवर और न
रेशमी कपड़े और
न दुशाले। वह
तो रानी थी
और न ही
पटरानी। वह किसी
सामन्त की बेटी
भी नहीं थी
तथा किसी प्रकार
की जागीरदार की
पत्नी भी नहीं
वह तो गांव
भोजला के एक
साधारण कोरी परिवार
में पैदा हुई
थी और पूरन
को ब्याही गई
थी। पिता भी
आम दलित परिवार
से थे और
पति भी लेकिन
देश और समाज
के प्रति प्रेम
और बलिदान से
उन्होंने इतिहास में खास
जगह बनाई
थी।
झलकारी बाई बचपन
से ही बहुत
बहादुर, हाजिर जवाब तथा
सपने देखने वाली
लड़की थी। एक
बार वह मिट्टी
में खेल रही
थी और किले
नुमा घरौंदा बना
रही थी। वह
सोचने लगती है
और सोचते-सोचते
सो जाती हैं
और सपने में
क्या देखती हैं
भलाः
;1-
सपना देख्या
झलकारी हो जिब
सोई उड़ै ताण
कै।।
सपने में
दिया महल दिखाई
कई जागां
दीखैं खड़ै सिपाही
पाई संगत
जमा न्यारी हो,
महल बीच मैं
आण कै।।
बैैठ घोड़े
पै फिर ऐड़
लगाई
काले बालां
संग चुन्नी लहराई
उठाई हाथ
मैं कटारी हो,
संगनी अपनी मान
कै।।
पूरे महल
का फेर दौरा
लाया
दिल अपने
मैं नक्शा जमाया
बताया झांसी नगरी
म्हारी हो, बात
सही बखाण कै।।
नींद खुली
जिब यो पाया
अंधेरा
नयों बोली
एक दिन आवै
सबेरा
लुटेरा फिरंगी तै
भारी हो, कहै
रणबीर पिछाण कै।।
चन्ना, रमची झलकारी
के गांव के
ही थे। गांव
और जंगल के
बीच का फासला
अधिक ना था।
गांव वालों के
लिए जंगल महज
जंगल नहीं था।
उनके जीवन का
महत्वपूर्ण अंग था
जो उनकी रोटी
रोजी में सहायक
बनता था। यह
बात अलग थी
कि कभी-कभी
इस जंगल में
विचरण करने वाले
जंगली जानवर गांवों
के लोगों को
नुकसान भी पहुंचा
दिया करते थे।
जंगल उनके जीवन
में रच बस
गया था। एक
बार जंगल में
झलकारी का सामना
एक बाघ से
होता है। क्या
हुआ भलाः
2-
झटपट हमला
बोल्या बाघ नै
जिब देखी झलकारी।।
कति नहीं
घबराई वा कुल्हाड़ी
हांगा लाकै मारी।।
जंगल और
गंाव उन बख्तां
एक दूजे के
पूरक बतलाये
गामौली खातर जंगल
सदा फल-फूल
देते आये
एक बात
न्यारी कदे-कदे
उड़ै जंगली जानवर
आज्या
दा लाकै
गाय भैंस मारदे
कदे माणस नै
बी खाज्या
नियति मान सन्तोष
करैं जिंदगी न्योेंए
बीतती जारी।।
चन्ना रमची आगे-आगेे झलकारी
बी पाछै चाल
पड़ी
लाकड़ी काट करी
कट्ठी फेर आई
वा निरभाग घड़ी
थक हार
झलकारी बैठी उसनै
नींद की झपकी
आई
सुण आवाज
हुई चैकस कुल्हाड़ी
उसनै ऊपर ठाई
सुण दहाड़
बाघ की चन्ना
रमची नै दे
दी किलकारी।।
जोश मैं
बाघ नै फेर
झलकारी पै छलांग
लगा दई
बिजली की तेजी
सै उनै कुल्हाड़ी
साहमी अड़ा दई
बाघ का
मुंह खुल्ला था
लाम्बे नुकीले दांत दिखाई
दें
अगले दोनों
पंजे दबोचैं झलकारी
नै साफ दिखाई
दें
बाघ बख्त
पै धोखा खाग्या
खून की बही
उड़ै फुव्वारी।।
बाघ दहाड़
कै चिल्लाया चन्ना
रमची का ध्यान
बंट्या
भाज कै
आये उड़ै तो
देख्या बाघ का
माथा पूरा फट्या
घर-घर
की आवाज काढ़ै
झलकारी कुल्हाड़ी थाम रही
एक और
वार कर दिया
ना वार दूजी
ना काम रही
बाघ पड़या
धरती ऊपर, गैलां
यो रणबीर लिखारी।।
झांसी पर जब
अंग्रेज अपना राज
जमा लेते हैं
तो लोगों की
दिक्कतें कम होनें
की बजाय बढ़ने
लगती हैं। अंग्रेजों
ने वायदे किये
थे कि झांसी
का राज उनके
हाथ आने के
बाद प्रशासन बेहतर
हो जायेगा। लोगों
के जीवन में
सुधार आयेगा। यदि
लोग फिरंगियों का
साथ देंगे तो
उनके संकट के
दिन खत्म जरूर
होंगे। मगर ज्यों-ज्यों फिरंगियों का
कब्जा राज पर
बढ़ता गया तो
आम जनता के
दुख दरद बढ़ने
लगे। अंग्रेजों का
अत्याचार बढ़ने लगा।
मगर झांसी
की जनता का
मनोबल नहीं कुचला
जा सका था।
रानी लक्ष्मी बाई
की बड़े उम्र
के गंगाधर राव
से शादी हो
गई थी और
युवावस्था में कदम
रखते ही विधवा
हो जाना, अंग्रेजों
के लिए दत्तक
पुत्रा के मामले
को खारिज करते
हुए झांसी पर
अपना राज कायम
करना ऐसी घटनाएं
थी जो झांसी
की जनता देख
रही थी। लक्ष्मी
बाई की अंग्रेजों
को ललकारने की
तैयारियां शुरू हो
गई थी। ऐसे
में एक दिन
पूरन झलकारी बाई
आपस मंे बाते
करते हैं। फिरंगियों
के राज पर
चर्चा होती है
तो पूरन फिरंगियों
को सम्बोधन करके
उनके राज के
बारे में क्या
कहता है भलाः
3-
गरीबां की मर
आगी फिरंगी तेरे
राज मैं।।
रैहवण नै मकान
कड़ै खावण नै
नाज नहीं
पीवण नै
पानी कड़ै बीमारी
का इलाज नहीं
म्हंगाई हमनै खागी,
फिरंगी तेरे राज
मैं।।
अकाल पड़गे
लगान बढ़े हुई
घणी लाचारी सै
बिन पानी
मरे तिसाये गोदाम
भरया सरकारी सै
जनता घणा
दुख पागी, फिरंगी
तेरे राज मैं।।
महिलावां पै अत्याचार
बढ़ै आंख थारी
मिंचगी
किसानां के ऊपर
क्यों तलवार थारी
खिंचगी
मक्कारी सारे कै
छागी, फिरंगी तेरे
राज मैं।।
शाम, दाम,
दण्ड, भेद डेमोक्रेसी
के हथियार थे
जिसे सोचे
ना पाये उसे
घणे झूठे प्रचार
थे
रणबीर बेईमानी आगी,
फिरंगी तेरे राज
मैं।।
झांसी की रानी
ने औरतों की
सेना बना ली
है यह झंासी
के आस पास
के इलाकों में
सबको मालुम पड़
गया था। तीर
तलवार चलाने की
ट्रेनिंग देकर अच्छी
खासी जनानी फौज
खड़ी कर ली
है। बहुत औरते
डरपोक थी। पत्ते
खड़कें और शाखे
सायं सायं करे
तो आपस
में लिपट जाती
थी। अंधेरी में
चलती, गिरकर घुटने
फोड़ लेती। मगर
महौल बदला था
और यही डरपोक
औरतंे छोर अछोर
रास्तों पर कहीं
भी पहुंच जाती
थी। ऐसी ही
एक डरपोक औरत
से जब झलकारी
बाई फौज में
शामिल होने की
बात करती हैं
तो वह क्या
कहती है भलाः
4-
सेना मैं
कैसे आउं झलकारी,
घरक्यां का मनै
डर सै।।
जिब जिकर
चलाउं मैं, ना
कोए उत्तर पाउं
मैं
मन मोस
कै रह जाउ
मैं, मेरे पै
ना कोए उत्तर
सै।।
फिरंगी मारैं कसूते
बोल, जावै मेरा
कालजा छोल
चमचों का बढग्या
टोल, गैल फिरंगी
मिस्टर सै।।
सारा गाम
उनतै डरै सै,
शरीफ उनका पाणी
भरै सै
नहीं बात
मेरे जरैै सै,
बस जानै मेरा
भीतर सै।।
उपर नीचे
नहीं सुणाई, यो
फिरंगी शह देवै
बाई
रणबीर करै कविताई,
जानै उनका चिल्लत्त्तर
सै।।
अंग्रेज फौज के
सिपाहियों को बरसों
घर नहीं जाने
दिया जाता था।
फिरंगी सोचता था कि
कहीं उनकी औरते
उन्हें भरमाकर मकसद से
ना भटका दें।
इस क्रूरता के
चलते गांवों में
शहरों में महिलाओं
को बहुत कष्ट झेलने
पड़ रहे थें।
कुछ लड़कियां घरों
से भागने लगी
थी। मैत्रायी पुष्पा
की कहानी की
रज्जो। उसका आदमी
फौज में गया
और काफी दिनों
तक नहीं लौटा।
रज्जो घर के
बेड़िनी के संग
भाग जाती है।
मगर वह भी
उस दौर के
महौल से अछूती
नहीं रहती। इस
तरह की ट्रेनिंग
के दौरान झलकारी
बाई और औरतों
के बीच बातें
होती हैं।
सब अपने-अपने
ढंग से पूरे
घटना क्रम को
देख रही हैं।
झलकारी बाई उन
सब की बाते
सुनकर क्या कहती है
भलाः
5-
जीणा होग्या
भारी बेबे, तबीयत
होगी खारी बेबे
सबनै ख्याल
उतारी बेबे,फेरबी
जीवन की आसमनै।।
पुराना घेरा तोड़
बगाया, हथियार हाथा मैं
उठाया
कमाया मनै जमा
डटकै, उनकै याहै
बात खटकै
मेरी हर
बात अटकै, पूरा
हुआ अहसास मनै।।
मुंह मैं
घालण नै होरै,
चाहे बूढ़े हों
चाहें छोरे
डोरे घालैं
शाम सबेरी, कहते
मनै गुस्सैल बछेरी
चाहते मेरै घाली
घेरी, गैल बतावैं
बदमाश मनै।।
सम्भल-सम्भल कदम
धरूं, आण बाण
पै कटकै मरूं
करूं संघर्ष
मिल जुल कै,
हसूं बोलू सबतै
खुलकै
ना जीउं
घुल-घुल कै,
बात बता दी
या खास मनै।।
चरित्राहीन मनै बतावैं,
भौं कोए तोहमद
लगावैं
खिंडावै या ईज्जत
म्हारी, बछिया की होवै
चिन्ता भारी
रणबीर बरगा लिखारी,
बताया चाहवै इतिहास
मनै।।
फिरंगियों की कारस्तानी
से लोग वाकिफ
होने लगे थे।
उनकी उदार छवि
के पीछे का
क्रूर चेहरा लोगों
को नजर आने
लगा था। कभी
कहीं तो कभी
कहीं गांव में
उनकी कमीनी हरकतों
की कहानियां लोगों
तक पहुंचने लगी
थी। कई अंग्रेजों
के पिठ्ठू उनकी
चाटूकारिता करते थे
और उनकी बहुत
बड़ाइयां किया करते।
मगर आम आदमी
अंग्रेज हुकमरानों की शाम
दाम दण्ड भेद
की नीतियों को
बखूबी जानने समझने
लगा था। एक
दिन एक अंग्रेजांे
को चाटूकार परिवार
की महिला झलकारी
बाई से अंग्रेजांे
के बारे में
उलझ गई। वह
महिला ब्राह्यण परिवारों
से थी। मगर
झलकारी बाई ने
उसकी बातों का
गम्भीरता से जवाब
दिया और फिरंगियों
के चरित्रा के
बारे में उस
महिला को समझाया।
क्या बताया भलाः
6-
इन अंग्रेज
फिरंगियां का तै,
नाम लेण मैं
भी टोटा री।।
चैड़े के
मां म्हारे गूठे
कटाये, ये बिचैलिया
सिर पै बिठाये
मगरमच्छ के आंसु
बहाये, जनता नै
योहे दुख मोटा
री।।
यो कमीशन
खाया हथियारां मैं,
बांट दिया गद्दार
साहूकारां मैं
बूझो देश
के इन ठेके
दारां नै, कौन
खरया कौन खोटा
री।।
दुनिया मैं चरचा
होरी आज, फिरंगी
हुया देश का
घोरी आज
हम ढूंढा
कोए फौरी इलाज,
देश का मूधां
मारया लोटा री।।
एक बै
चढ़गी काट की
हाण्डी, जमकै मारी
इननै डाण्डी
ईब इनकी
चाल हुई बाण्डी,
ये रणबीर गशीला
झोटा री।।
एक दिन
झांसी की रानी
लक्ष्मी बाई भी
महिला सैनिकों की
ट्रेनिंग में शामिल
होती हैं। ट्रेनिंग
खत्म होने के
बाद लक्ष्मी बाई
अपनी महिला सेना
पति झलकारी बाई
से कहती हैं-
क्या बात है
झलकारी बाई औरतो
की संख्या बढ़
नहीं रही तुम्हारी
सेना में। झलकारी
बाई कहती हैं-
रानी जी ये
मर्द अपनी औरतों
को सेना में भेजना
ही नहीं चाहते।
कहते हैं औरतें
भी कहीं सेना
में जाती हैं?
रानी लक्ष्मी बाई
ठण्डी सांस भर
कर जवाब देती
हैं- ठीक कहती
हो झलकारी बाई।
मैनै जब खुद
हथियार उठाये थे तो
राव परिवार को
पसन्द नहीं आये
थे। यह पुरुषों
की नस्ल है
ही ऐसी। मगर
झलकारी बाई ने
दुगने उत्साह के
साथ गांव-गांव
जाकर महिलाओं को
प्रोत्साहित करना शुरू
किया। महिलाओं की
टोली बना कर
वह गांव-गांव
जाती और गीत
गा-गाकर औरतों
को प्रोत्साहित करती
थी। कैसे भलाः
7-
मतना लाओ
वार सखी, हो
जाओ तैयार सखी
ठाल्यो सब हथियार
सखी, लड़नी पड़ै
लड़ाई हे।।
गांव गली
शहर कूंचे मैं,
इज्जत म्हारी महफूज
नहीं
फिरंगी करै अत्याचार
करता कोए बी
महसूस नहीं
नहीं लड़ाई
आसान सखी युद्ध
होगा घमासान सखी
मारां फिरंगी शैतान
सखी, ईब मतना
करो समाई हे।।
रूढ़िवादी विचार क्यों
दखे बनकै ये
दीवार खड़े
बन्दूक ठाई औरत
नै खिलाफ हुये
प्रचार बड़े
फिरंगी गेरता फूट
सखी, घणी मचाई
लूट सखी
ईब हम
लेवां ऊठ सखी,
समों लड़न की
आई हे।।
फिरंगी घणा फरेबी
पाया फंदा घाल
दिया फांसी का
रानी झांसी
तार बिठाई, राज
खोंस लिया झांसी
का
नहीं सहां
अपमान सखी, आजादी
का अभियान सखी
आज आया
इम्तिहान सखी, डंके
की चोट बताई
हे।।
जीणा सै
तो लड़णा होगा,
संघर्ष हमारा नारा बहना
पलटन बनाकै
कदम बढ़ै, दूर
नहीं किनारा बहना
अब तो
उँचा बोल सखी,
झिझक ले अब
खोल सखी
जाये
फिरंगी डोल सखी,
रणबीर अलख जगाई
हे।।
जब लक्ष्मी
बाई अंग्रजों से
लोहा लेने का
मन बना चुकी
थी तो सेना
खड़ी करने की
तैयारी में जुट
गई थी। झलकारी
बाई का पति
पूरन भी उसकी
सेना का महत्व
पूर्ण व भरोसे
मंद सेनापति था।
पूरन दिन रात
एक करके मेहनत
के साथ भेदियों
से अपनी गति
विधियों को बचा
कर करते हुए,
लगातार लोगों को जंग
के लियंे तैयार
कर रहे थे।
इसी प्रकार एक
सिपाही जब भर्ती
होकर सेना में
जाने लगता है
तो उसकी संगिनी
परेशान हो जाती
है यह सोचकर
कि उसका पति
परदेश फौज में
जा रहा है।
क्या कहती है
भलाः अपने पति
से-
8-
मतना मनै
भुलाइये, हाथ जोड़
कहै तेरी ब्याही।।
म्हारा मुश्किल ईब
जीणा होग्या
यो घूंट
सबर का पीणा
होग्या
अपना लाकै
जी दिखाइये, ना
तो होज्या म्हारी
तबाही।।
कुछ उल्गा
सांस होवै म्हारा
सुख तै
होज्या फेर गूजारा
जंग मैं
जोर लगाईये, होज्या
रानी की मनचाही।।
माता पिता
और लड़की तीन
फिरंगी समझै हमको
दीन
अंग्रेजां नै धमकाइये,
नहीं आसान उनकी
राही।।
परदेश मैं जो
याद सतावै
एक तरकीब
फूल बतावै
तूं सपने
मैं आ जाइये,
रणबीर ना करै
मनाही।।
रानी झांसी
को जब हुकम
सुना दिया जाता
है तो वह
झांसी की रानी
नहीं बन सकती
तो रानी झांसी
ने फिर भी
हार नहीं मानी।
कई बार फिरंगी
के नुमाइन्दों से
बातचीत का दौर
चला कि झांसी
को रानी लक्ष्मी
बाई को दिया
जाये। जब आखिरी
हुकम सुना दिया
जाता है तो
रानी झांसी को
एक बार तो
बड़ा धक्का लगता
है मगर रानी
लक्ष्मी बाई जल्दी
ही उबर जाती
हैं और पूरन
को और झलकारी
बाई जैसे योद्धाओं
के साथ मिलकर
फिरंगी से टकराने
का फैसला करती
है। एक दिन
फिरंगियो के बारे
में झलकारी बाई
और लक्ष्मी बाई
के बीच बातचीत
होती है तो
झलकारी बाई क्या
कहती है फिरंगी
हुकमरानों के बारे
मेंः
..9..
गुलाम कर दिया
म्हारा देश आपस
मैं लडव़ाकै।।
फिरंगी छाये भारत
उपर, गरीब गेरे
कुंएं मैं ठाकै।।
चाल पाई
या आण्डी बाण्डी
या राजनीति
फिरंगी की लाण्डी
इनमै मारी
खूबै डाण्डी या
जनता बहकाकै।।
कितै मस्जिद
पै लड़वाये सां
कितै बिन
बात भिड़वावे सां
न्यों गुलाम बनावै
सां, उन्टी ये
सीख सीखाकै।।
धरती म्हारी
खोंस लई है
लगन कई
गुणा ठोक दई
है
किसानी हो बेहाल
गई है, कई
मरे फंासी खाकै।।
फिरंगी नै बीज
फूट के बोकै
किसान लूट लिये
नंगे होकै
कहै रणबीर
बी रोकै, देखो
नै नजर घुमाकै।।
झलकारी बाई ने
समाज की अवहेलना
भी बहुत झेली
थी। मगर उसने
कभी हार नहीं
मानी। यह अलग
बात है कि
उतार चढ़ाव उसके
जीवन में भी
आये। झांसी के
आस-पास के
देहात में जहां
रानी लक्ष्मी बाई
बहुुत लोक प्रिय
थी वहीं झलकारी
बाई को भी
लोग एक कर्मठ
व बहादुर महिला
के रूप में
जानने लगे थे।
आपस में जहां
भी कुछ महिलायें
इकठ्ठी होती वहां
झलकारी बाई के
बारे में चर्चाएं
बहुत होती थी।
महिलाओं ने झलकारी
बाई को लेकर
बहुत से गीत
भी बना लिये
थे और बहुत
से मौकों पर
महिलाएं इकठ्ठी होकर गीत गाती
भी थी। क्या
बताया भलाः
10-
सोते थे
आण जागयो री,
झलकारी बाई नै।।
सच्चाई को भूल
रहे थे, फिरंगी
झोली झूल रहे
थे
हमे सही
रास्ता दिखायो री, झलकारी
बाई नै।।
लाई लूट
खसोट की मण्डी,
लूट रहे थे
फिरंगी पाखण्डी
इनके सारे
भेद बतायो री,
झलकारी बाई नै।।
आपस मैं
तकरार जात की,
धर्म पै लड़ाई
बिन बात की
हमे उजड़ण
तै बचायो री,
झलकारी बाई नैं।।
नारी का
सत्कार नहीं था,
पढ़ने का अधिकार
नहीं था
बन्दूक चलाना सिखायो
री, झलकारी बाई
नैैै।।
दिल मैं
विश्वास नहीं था,
म्हारे अन्दर इकलास नहीं
था
फिरंगी तै लड़वायो
री, झलकारी बाई
नै।।
अकाल पड़
रहे थे। फिरंगी
सरकार ने किसानों
के लगान बढ़ा
दिये थे। किसान
लगान देने की
हालत में नहीं
थे। उनसे जबरन
लगान वसूला जाने
लगा था। उन
पर अत्याचार किये
जाने लगे। किसानों
के एजैंट जमींदार
और कई अफसर
किसानों को पकड़
ले जाते थे
और उनकी पिटाई
करते थे। एक
बार झलकारी बाई
एक परिवार को
इस तरह के
अत्याचार से बचवाती
है। उस किसान
की पत्नी झलकारी
बाई से बहुत
प्रभावित होती है।
वह एक मुलाकात
में झलकारी बाई
से विस्तार से
किसान की हालत
पर चर्चा करती
है। क्या कहती
है भलाः
11-
मनै सारी
खोल बताइये री,
म्हारी मेहनत कित जावै।।
किसनै अन्न धन
लूट्या म्हारा
नहीं चालै
उसपे कोए चारा
असली बात
समझाइये री, हमनै
कूण लूट कै
खावै।
खेती करना
आसान नहीं सै
लगान का
उनमान नही सै
तू करकै
तोड़ बताइये री,
आड़ै गुलछर्रे कूण
उड़ावै।।
किसानी घणी या
डरी हुई सै
दुख कसूते
मैं भरी हुई
सै
तूं इसका
धीर बंधाइये री,
फिरंगी पै लूट
पिट कै आवै।।
और गुलामी
किसनै कहते
उमर बीतगी
दुख ये सहते
रणबीर के धोरै
जाइये री, नहीं
सूकी कलम घिसावै।।
जगह-जगह
पर फिरंगियों ने
अपने भेदिये और
एजैंट छोड़ दिये
थे जो अंग्रेजों
को रानी लक्ष्मी
बाई व झलकारी
बाई के बारे
में सूचनायें फिरंगी
के दरबार में
पहुंचाते थे। कई-कई गांव
में ये आंतक
का प्रयाय बन
गये थे। एक
गाम में झलकारी
बाई और महिला
पुरूष अपनी बातों
को लेकर मीटिंग
कर रहे थे
कि वहां पर
ये लोग आकर
उल्टी सीधी बातें
करने लगे और
लोगों को डराने
धमकाने लगे। वे
अपने बारे में
क्या बताते हैं
भलाः
..12..
फिरंगी के चमचे
पक्के, छुटाद्या सबके छक्के
मरवादयां सबवैफ धक्वेफ,
लोग रहैं हक्के
बक्के
हम किसतै
नहीं घबरावां, फिरंगी
नै करां सलाम।।
चले जिस
घर मैं जावां,
ईंट तै ईंट
उड़ै भिड़ावां
आपस में
लाठ बजवावां, कति
नहीं हम सरमावां
थारे गाम
का कर दयोगे
हम एक दिन
पहिया जाम।।
हम लाते
ताश की बाजी,
झूठ बोलां कति
ताजी
रहते जो
शरीपफ बंदे, करदयां
उनवेफ कपड़े गन्दे
ईमानदारां की कर
द्योगे हम नींद
हराम।।
हम सां
खद्दर धारी, सब
मानैं बात ये
म्हारी
हम दे
द्यां खड़ी बुखारी,
हम सा कसूत
खिलारी
भिड़ै सांझ
नै पोली मैं
म्हारे जाम तै
जाम।।
म्हारै साहमी ना
डट पाया, धोबी
पछाड़ कर लाया
गाम के
बजा दिये बारा,
लादी इसी इसकै
गारया
कति उत्तरी
कोन्या धोई खूब
सुबह और शाम।।
पहलवान एम एल
ए म्हारा, करदे
बारा छह ठारा
लगावां सबकै रगड़ा,
बिन बात कर
झगड़ा
रणबीर बरोने आला
एकाध बै कसै
लगाम।।
गांव-गांव
में जब फिरंगियों
के खिलाफ आवाज
बुलन्द होने लगती
है झलकारी बाई
गांव-गांव जाकर
महिलाओं पुरूषों से मुलाकात
करती हैै और
महिलाओं को घर
की चार दिवारी
से बाहर आकर
फिरंगियों के खिलाफ
आवाज बुलन्द करने
का आह्वान करती
है। बहुत सी
महिलांए झलकारी बाई के
कहने से लक्ष्मी
बाई की सेना
में भर्ती हो
जाती हैं। हरेक
जात की महिलांए
इसमंे हिस्से दारी
करती हैं। एक
दिन ट्रेनिंग के
बाद आराम करते
वक्त महिलांए गीत
गाना शुरू कर
देती हैं। कई
गीत गाये जाते
हैं। एक महिला
गाने लगती है
और बाकी महिलांए
उसका साथ देती
हैः
..13..
मिलकै आवाज उठाई
हे सखी झलकारी
बाई नै।।
बहोतै श्यान बढ़ाई
हे सखी झलकारी
बाई नै।।
हमको कतिए
ध्यान नहीं था
गुलाम क्यों ज्ञान
नहीं था
डटकै अलग
जगाई हे सखी
झलकारी बाई नै।।
फिरंगी के बढ़े
थे अत्याचार
वे नीचा
हमें दिखावै बारम्बार
हिम्मत म्हारी बंधाई
हे सखी झलकारी
बाई नै।।
फिरंगी सुनी पफरियाद
नहीं थी
म्हारे मुंह मैं
आवाज नहीं थी
आवाज उठानी
सिखाई हे सखी
झलकारी बाई नै।।
पूरे इलाके
मैं ललकार गई
रणबीर कांप सरकार
गई
औरत की
पहचान बनाई हे
सखी झलकारी बाई
नै।।
यह वही
दौर था जब
अंग्रेज भारत के
अलग-अलग हिस्सों
से नौजवानों को
फौज में भर्ती
करके बंगाल आर्मी
को ज्यादा ताकतवर
बना रहे थे।
उस वक्त अंग्रजों
को अपनी ताकत
बढ़ाने का और
बचाने के लिए
बंगाल आर्मी पर
निर्भर रहना पड़ा।
इसी प्रकार राजे
रजवाड़ों को अपने
कब्जे में लेकर
बहुत से लोगों
को राज दरबार
की नौकरी से
हटा देते थे
और अपने चाटु
कार और वफादार
लोगों को नौकरी
पर रख लेते
थे। लहकारी बाई
झलकारी बाई की
बचपन की दोस्त
थी। उसका घरवाला
झांसी पर कब्जा
अंग्रेजों द्वारा किये जाने
से पहले वहां
नौकरी करता था।
मगर फिरंगी का
राज झांसी आने
के बाद उसे
वहां से हटा
दिया जाता है।
परिवार संकट के
दौरान पहले ही
गुजर रहा था।
नौकरी हटने के
बाद परिवार का
संकट और भी
बढ़ जाता है।
लहकारी बाई झलकारी
बाई से मिलती
है तो क्या
कहती है भलाः
..14..
आहे बाई
एक बात बताउं,
यो दिल अपणा
खोल दिखाउं
फिरंगी नै कर
दिया चाला हे
मनै तेरी सूं।।
मां बापां
नै करी सगाई,
बेबे ना मैं
फूली समाई
मन मैं
हुया था उजाला
हे मनै तेरी
सूं।।
ब्याह की तारीख
धरी थी, रस्म
कुछ पूरी करी
थी
मैं जपूं
थी उसकी माला
हे मनै तेरी
सूं।।
फिरंगी का हुक्म
आया, नौकरी तै
गया हटाया
कर दिया
गुड़ का राला,
हे मनै तेरी
सूं।।
टोहना चाहा कुआं
झेरा, झलकारी नै
भेज्या बेरा
हटाया दुख का
घाहला हे मनै
तेरी सूं।।
सुना की
उनै बात बताई,
उनै नई आस
बंधाई
दिखाया सघर्ष का
पाला हे मनै
तेरी सूं
घर म्हारा
बचा दिया हे,
ब्याह म्हारा करा
दिया हे
खोल दिया
भ्रम का ताला
हे मनै तेरी
सूं।।
म्हारे साथ मैं
सै रणबीर, खीचैं
विद्रोह की तसबीर
तार दिया
आंख का जाला
हे मनै तेरी
सूं।।
एक गांव
में बहुत सी
महिलांए सेना में
अपना नाम लिखवा
देती हैं। एक
महिला का पति
उसे सेना मंे
जाने से मना
करता है। कुछ
महिलांये उसके पति
को मनाने जाती
हैं मगर वह
नहीं मानता। वह
औरत अकेले में
भी बहुत समझाती
है। नहीं मानता।
झलकारी बाई उसे
मनाने को आती
है। वह महिला
अपने पति को
क्या समझाती है
भलाः
...15...
सेना मैं
जाउंगी जरूर, चाहे ज्यान
चली जावै।।
झलकारी बाई आई
है, नया पैगाम
ल्याई है
मान बढ़ाउंगी
जरूर, चाहे ज्यान
चली जाये
फिरंगी अत्याचारी तै,
गुलामी की बीमारी
तै
निजात पाउंगी जरूर,
चाहे ज्यान चली
जाये।।
रानी लक्ष्मी
बाई का नारा,
हम सबनै लागै
प्यारा
नारा लगाउंगी
जरूर, चाहे ज्यान
चली जाये।।
फिरंगी हुया सै
लुटेरा, सहन करया
सै भतेरा
सबक सिखाउंगी
जरूर, चाहे ज्यान
चली जाये।।
अपनी ट्रेनिंग
पूरी कर लेने
के बाद पूरी
महिला सेना की
महिलांए फिरंगी के खिलाफ,
झांसी को बचाने के
लिए, अपने मान
सम्मान के लिए,
निरन्तर जंग जारी
रखने की शपथ
लेती हैं। वे
कहती हैं कि
हम किसी जात
या धर्म से
हों हमारे लिये
सबसे पहले झांसी
है। अपना देश
है। फिरंगी को
यहां से निकाल
भगाना हमारा मकसद
है। एक रोज
एक महिला एक
गीत सुनाती है
जो उसके गांव
की महिलाओं ने
मिल बैठकर तैयार
किया था। क्या
बताया भलाः
..16..
चालो झांसी
आजाद करावां हे
सखी सारी रल
मिलकै।।
बुढ़यां नै तो
हम मनाल्यां, इन
छोरयां नै समझावां
औरतां नै भी
साथ मिलावां हे
सखी सारी रल
मिलकै।।
बन्दूक तोप चालाना
सीखैं इस तरियां
बणैगी बात
चाहे छलनी
होज्या गात हे
सखी सारी रल
मिलकै।।
म्हारे बेटे भाई
और पति फौज
मैं भर्ती करवावां
कान्धे तै कान्धा
मिलावां हे सखी
सारी रल मिलकै।।
दस बीस
नहीं हजारा लाखां
जोर का नारा
लगावां
झंासी और दिल्ली
हिलावां हे सखी
सारी रल मिलकै।।
फिरंगी तै आजाद
कराकै सुखी घर
परिवार करांगे
गुलामी नै नमस्कार
कहांगे हे सखी
सारी रल मिलकै।।
खाली बैठे
ना काम चलै
आगै आणा होगा
हे,
फिरंगी मार भगाणा
होगा हे सखी
राल मिलकै।।
आखिर झलकारी
की उम्र ही
क्या थी उस
वक्त। इस उम्र
में बाघ से
लड़ना आश्चर्य की
बात थी। कहां
बाघ और कहां
झलकारी गांव के
लिए यह बहुत
गौरव की बात
थी। मगर कुछ
को खुसी थी
तो कुछ को
ईष्र्या थी। छोटी
जात की लड़की
किसी बाघ को
मारदे-मरम्परा के
हिसाब से यह
ठीक नहीं होता
था। गुण तो
सवर्ण समाज के
खाते में थे
और अवगुण दलितों
और पिछाड़ों के
खाते में थे।
समाज आसानी से
इस बात को
कैसे स्वीकार कर
लेता है कि
कोरी जाति की
एक लड़की ने
बाघ को पछाड़
दिया। खैर बड़ी
होकर यही लड़की
रानी झांसी की
महिला सेना की
कमाण्डर बनी समाज
फिर इसे पचा
नहीं पाया। क्या
बताया भलाः
17-
दलित की
छोरी बनी कमाण्डर
समाज पचा ना
पाया।।
कोरी जात
की छोरी पै
कोए विश्वास जमा
ना पाया।।
उँची जात
के लोग लुगाई
झलकारी घणै खटकै
थी
या तलवार
परम्परा की उसकी
नाड़ पै लटकै
थी
अन्ध विश्वास
का मुकाबला वा
करै पूरा डटकै
थी
दिया बाघ
मार जिसनै घोरी
वीर बहादुर छंटकै
थी
ऊँची जात
का दबदबा बी
झलकारी नै दबा
ना पाया।।
भेड़िया समझ गोली
चला दी गउ
की बछिया लिकड़ी
पां मैं
गोली लागी बछिया
कै गाम आल्यां
नै पकड़ी
झूठ-मूंठ
के बहाने लाकै
कई फतव्यां मैं
जकड़ी
सब झेल
गई झलकारी किसे
आगै नाक ना
रगड़ी
गहने बेच
निभाये फतवे कोए
राज बचा ना
पाया।।
न्यों बोले या
बन्दूक चलावै परम्परा सारी
तोड़ दई
कमाण्डर बन सेना
की परम्परा सब
पीछै नै छोड़
दई
ऊँची जाति
की गेल्यां लगा
झलकारी नै होड़
दई
अपने पाह्यां
कुल्हाड़ी मारी किस्मत
इनै फोड़ लई
उसनै दिल
जीत लिये मंजिल
तै कोए हटा
ना पाया।।
रानी लक्ष्मी
बाई की उनै
मैदाने जंग मैं
ज्यान बचाई
पोशाक पहर कै
रानी की फिरंगी
गेल्यां जा टकराई
फिरंगी सेना रही
देखती उनकी कोन्या
पार बसाई
इस ढालां
झलकारी नै रणबीर
हिस्ट्री बनाई
जिन्दा दिली जिसी
दिखाई कोए और
दिखा ना पाया।।
एलिस ने
जेब से मालकम
वाली घोषणा निकाली।
दरबारियों के कलेजे
धक-धक करने
लगे। घोषणा पढ़ने
से पहले दरबार
में सन्नाटा था।
झांसी राज का
उंट न जाने
किस करवट बैठे।
अन्ततः घोषणा की गई।
रानी झांसी की
झांसी नहीं रही।
परदे के पीछे
से गूंज उठा
था ये स्वर‘‘मैं अपनी
झांसी नहीं दूगीं’’। झांसी
के इतिहास की
इसी दुखद घड़ी
से युद्ध की
तैयारियां शुरू हुई
थी। कुछ लोगों
ने विरोध भी
किया रानी का।
कहा- रानी साहिबा
युद्धक्षेत्रा में लड़ना
तो क्षत्रियों का
काम है। रानी
ने शलीनता से
जवाब दिया- हमे
कोई बताये क्षत्राीय
धर्म मन से
है या जाति
से। चुप्पी रही।
फिर श्याम चौधरी
बोले- हमारे पूर्वजों
ने सोच समझ
कर कायदे कानून
बनाये होंगे। रानी
ने जवाब दिया-
नियम कायदे बनते
हैं समय देखकर।
तब वही युगधर्म
था अब यही
युग धर्म है।
श्याम चैधरी फिर
बोले- भला धर्म
भी कोई बदलता
है, उसके कानून
रीति रिवाज परम्परायें
तो हमेशा एक
जैसे रहते हैं।
तुरन्त जवाब में
बोली थी रानी-
अब यही समझ
लो कि समय
को धर्म के
नये कायदोें की
जरूरत है।
झांसी को कुछ
नये वीर योद्धा
चाहिये वे चाहे
महिला हों या
पुरूष और किसी
भी जाति धर्म
तथा वर्ग के
हों। रानी ने
इसी समझ के
तहत शायद कमाण्डर
बनाया। झलकारी ने जात
धर्म से उफपर
उठकर झांसी की
रक्षा की। क्या
बताया भलाः
....18...
धर्म रक्षा
ना जाति रक्षा,
देश रक्षा पै
लड़ी झलकारी।।
चूड़ी पहनना
छोड़ समाज के,
साहमी अड़ी झलकारी।।
देश की
रक्षा खातर उसनैं
बन्दूक हाथां मैं ठाई
थी
झांसी पै मैं
ज्यान झोंक दयूं
मन-मन मैं
कसम खाई थी
ना पाछै
मुड़कै लखाई थी
बाघ तै भिड़ी
झलकारी।।
रेशमी कपड़े और
दुशाले नहीं चाहे
महल अट्टारी
ना रानी
ना पटरानी थी
वा थी कोरी
जात की नारी
सामन्त ना थी
जागीर दारी गरीबी
मैं खड़ी झलकारी।।
भोजला गाम की
छोटी जात मैं
जन्म लिया झलकारी
नै
बचपन तै
बाघ तै भिड़ी
शिकार किया झलकारी
नै
इतिहास रच दिया
झलकारी नै अहम
कड़ी झलकारी।।
उसकी गेल्यां
दुभान्त करी देश
के इतिहास कारां
नै
रणबीर कम जिकर
करया देश के
म्हारे सूत्राकारां नै
समाज के
ठेकेदारां नै खूब
झेलनी पड़ी झलकारी।।
झलकारी के सामने
अब एक ही
रास्ता बचा था
कि गोरों का
ध्ध्यान रानी से
हटाया जाये और
लक्ष्मी बाई को
बचाया जाये। वह
एकदम छावनी जा
पहुंची। घोड़े की
लगाम खींची। तेज
आवाज सुनकर गोरे
चैंक गये। पूछा-
कौन हाय? झलकारी
ने बेखौफ जवाब
दिया था- रानी।
सैनिक बोला- कौन
रानी? झलकारी फिर
बोली-झांसी की
रानी लक्ष्मी बाई।
रोज को खबर
दी गई। वह
आया और पूछा-
कौन हो टुम।
कहा- झंासी की
रानी । सब
कैम्प में आ
गये। फिरंगी दुविधा
में थे। कैसे
पता लगायें वास्तव
मैं यह औरत
रानी लक्ष्मी बाई
है। घर का
भेदी लंका ढाये।
दुल्हाजु अंग्रेजों का भेदिया
था। उसे बुलाया
गया। यह वही
दुल्हाजु था जिसने
ओरछा फाटक खोलकर
अंग्रेजीं सेना को
भीतर आने का
अवसर दिया था।
वह बोला सर
यह रानी नहीं
है। यह झलकारी
कोरिन है। झलकारी
दुल्हाजु पर झपटी।
रोज ने कहा-
तुम्हे गोली मार
देगा। झलकारी फिर
गरजी- मार देय
गोली। मोखौं मौत
से डर नई
लागै। अंग्रेज उसकी
निडरता से प्रभावित
होते हैं। और
उसे छोड़ देते
हैं। उसे बचने
की खुशी न
थी। वह याद
करती है पिछला
वक्त। क्या बताया
भलाः
...19...
मैदाने जंग मंे
मरना है, फिरंगी
से नहीं डरना
है
यो वायदा
पूरा करना है,
कहती रानी लक्ष्मी
बाई।।
तीन बरस
ना जेवर पहरे
अपणा प्रण निभाया
रानी तै
बोली गहने पहरूं
यो समों लडण
का आया
रानी बोली
गहने पहरो, वा
बोली रानी जी
कहरो
नहीं मेरे
पै गहना रहरो,
बछिया का जुर्माना
चुकाई।।
शाम दाम
दण्ड भेद के
दम सौचे यो
राज कमाया
देश बी
बंट्या जात धर्म
पै फिरंगी नै
फायदा ठाया
घर का
भेदी यो लंका
ढावै, म्हारे राज
उड़ै पहोंचावै
फिंरगी आपस मैं
लड़वावै, म्हारी इसनै रेल
बनाई।।
दुख इतना
दिया इननै कसर
बाकी रही कोन्या
भोली जनता
जान गई फिरंगी
की नीत सही
कोन्या
बड़ा जटिल
रूप सै जंग
का, दुश्मन पाया
दुल्हाजू भाई।।
उतार-चढ़ाव
आये देश मैं
जन क्रान्ति का
माहौल था
बोली फिरंगी
सुणकै म्हारी होग्या
डामा डोल था
यो बरोने
आला रणबीर, जो
जंग की खीचैं
तस्वीर
झलकारी बनी रणधीर,
जबान की घणी
पक्की पाई।।
एक दिन
ऐसा भी जब
रणभेरी बज उठी।
झलकारी तो युद्धक्षेत्र
में उतरने को
लालायित थी ही।
10 मई 1857 को अम्बाला
और मेरठ छावनी
में जो भारतीय
सैनिकों ने विद्रोह
की शुरूआत की
थी उसकी चिंगारी
झांसी में पहुंची।
झलकारी ने रानी
से कहा- आज
मेरी प्रतिज्ञा पूरी
हो गई परन्तु
साध रह गई।
रानी बोली- प्रतिज्ञा
कैसी और साध
क्या। झलकारी बोली
मार्च माह उन्नीसौ
चैवन का झांसी
अंग्रेजों ने हरियाय
लय था। उस
दिन मैने प्रतिज्ञा
मैं अपने जेवर
तार दिये थे।
आज पहनने का
मन हय। रानी
ने कहा- जौ
तो खुशी का
अवसर है पैन्नों।
झलकारी उदास स्वर
में बोली- कों
है जो पैन्नों?
रानी को आश्चर्य
हुआ और पूछा-
क्यों? झलकारी ने जवाब
दिया- बछिया घायल
होने से गंगा
स्नान और भोजी
में सबई बिक
गये। रानी दुखी
हुई। सुनार बुलवाकर
नये आभूषण बनवाने
की बात कही।
झलकारी ने मना
कर दिया। 6 जून
1857 को झांसी में विद्रोह
भड़क उठा। कैप्टन
गोडने तथा कैप्टन
डनलप 6 जून के
बीच मारे गये।
क्या बताया भलाः
...20...
ृ झांसी
पहोंच गई मेरठ
छावनी की चिन्गारी।।
जंग मैं
ज्यान झोंक दी
बहादुर झांसी की झलकारी।।
पूरन कोरी
और भाउ बख्शी
नै जंग की
संभाली कमान
कानपुर झांसी क्रान्ति
फैली फिरंगी हुया
घणा हैरान
झलकारी नै कसी
लगाम जंग की
करी पूरी तैयारी।
सन चैवन
मैं फिरंगी नै
झांसी का राज
हथियाया था
जेवर ना
पहने झलकारी नै
मन मैं प्रण
उठाया था
पूरा कर
दिखाया था गया
भाज वो अत्याचारी।।
हिम्मत देखण जोगी
बताई देश तै
नाता जोड़ लिया
बंगाल आर्मी बागी
होगी मंुह तोपां
का मोड़ दिया
काढ़ सही
निचोड़ लिया घर
भेदी रचैं कलाकारी।
एक बै
आजाद हुई झांसी
फिरंगी घणा घबराया
था
हाथ पैर
फूल गये थे
बागिया नै राज
हथियाया था
फिरंगी मार भगाया
था, झांसी की
सड़क ललकारी।।
एक दिन
रानी लक्ष्मी बाई,
पूरन, झलकारी बाई
और बाकी लोग
सोच-विचार कर
रहे थे। रानी
ने झलकारी को
कहा- झलकारी तुम्हारी
पलाटन की संख्या
नहीं बढ़ रही
है। जवाब में
झलकारी बाई बोली
थी- रानी साहिबा
खता माफ हो।
जब तलक मरद
अपनी लुगाईयों को
नहीं कहवेंगें तब
तक लुगाईयों की
गिनती बढ़नी मुश्किल होगी। रानी
ने सुना तो
गम्भीर होकर बोली-हां झलकारी
यह बात तो
तुम्हारी ठीक है।
अब भला ऐसे
मर्दों को कौन
समझाये। उनका काम
है हमेशा स्त्रिायों
को समझाना। कौन
मर्द चाहता है
कि उसकी पत्नी
घर से बाहर
जाकर तलवार चलाना
सीखे। मुझे ही
देखो तलवार चलाने
के ही कारण
राजा साहब की
कितनी बाते सुननी
पड़ती थी। वे
राजा यह चाहते
थे हमेशा महल
की चार दिवारी
में रहूं। वे
नाचने के लिये
कहे तो नाचने
लगू........फूलों से भरी
सेज पर लेटने
को कहे तो
बिछ जाउं। सभी
पति अपनी पत्नियों
को अंक शायिनी
बनाकर रखना चाहते
हैं।--जांवाब बनाकर
नहीं। दोनों ने
मिलकर महिलाओं को
संगठित किया। क्या बताया
भलाः
....21...
औरतां की करी
फौज खड़ी, ढीली
करी पतियां की
तड़ी
लेकै हथेली
पै ज्यान लड़ी,
या कमाण्डर झलकारी।।
रानी लक्ष्मीबाई
नै सौपीं झलकारी
को जिम्मेदारी या
जी ज्यान
तै जुटी महिला
आगै-आगै चली
झलकारी या
बार-बार
किले मैं जाणा
हो, शस्त्रा शिविर
चलाणा हो
झांसी का ताज
बचाणा हो, फिरंगी
घणा अत्याचारी।।
कोरी काछी
चमार बखोर कडेरे
र्मी खटीक पासी
बहादुर जातियों की
महिला बचावैं थी
वो झांसी
शहरी वेश्या
आई सेना मैं,
कट्ठी कसम खाई
सेना मैं
उंच-नीच
मिटाई सेना मैं,
या ताकत बढ़ती
जारी।।
बलिदान भावना झलकै
उफान सा आया
झांसी मैं
नई नवेली
दुल्हन आई हथियार
उठाया था झांसी
मैं
महिला जोश मैं
भरी हुई, या
ज्यान हथेली धरी
हुई
ट्रेनिंग भी पूरी
करी हुई, उमंग
भरी बेशुम्मारी।।
चारों कान्ही कुर्बानी
का माहौल दे
दिखाई झांसी मैं
कोए चेहरा
ना गमगीन दिखै
ना कोए उदासी
मैं
जिननै थी मजाक
उड़ाई, उननै करी
खूब बड़ाई
या रणबीर
की कविताई, बरोने
मैं अलख जगारी।।
झलकारी वापस बस्ती
में आई तो
किसी को विश्वास
नहीं हुआ कि
अंग्रेजांें के बीच
छावनी से वह
जिन्दा वापिस भी लौट
सकती है। उसका
पति पूरन शहादत
दे चुका था।
उसकी चिता पर
झलकारी ने फिर
कसम खाई कि
वह उसके मकसद
को पूरा करने
के लिए एक
बार फिर से
प्रयत्न करेगी। झलकारी के
मन में तड़प
थी कि जिस
झांसी की रक्षा
के लिए वह
महिलाओ की सेना
की कमाण्डर बनी,
कपड़ा बुनना छोड़
उसने झांसी की
देश भक्त जनता
को हथियार चलाना
सिखाया, वह झासी
गोरों के प्रभुत्व
में चली गई।
उसने फिर बिखरे
हुुये लोगों की
सेना बनाने का
काम अपने हाथ
लिया। झलकारी बाई
के बारे में
कवि क्या बताता
है भलाः
..22..
जो थकी
नहीं, जो बिकी
नहीं, जो रूकी
नही, जो झुकी
नहीं
वा थी
इन्कलाब री, जुलम
का जवाब री।।
हर शहीद
का, हर रकीब
का, हर गरीब
का, हर मुरीद
का
झलकारी थी ख्वाब
री, खुली हुई
किताब री।।
लड़ी वा
इसकी खातर देश
आजादी चाही उनै
झांसी का इलाका
कहते कही बात
निबाही उनै
ृ मालिक
मजूर के, नौकर
हुजूर के, रिश्ते
गरूर के, जलवे
शरूर के
छोडडै फिरंगी जनाब
री, उसका योहे
ख्वाब री।।
बोली नहीं
मानैं हुकम जुलमी
हुकम रान का
जंग छिड़
लिया फिरंगी और
हिन्दुस्तान का
ृ सच
की ढाल, लेकै
मशाल, थे ऊँेचे
ख्याल, किया था
कमाल
खिला लाल
गुलाब री, गोरे
मारे बेहिसाव री।।
ृ मान्या
नहीं कदे फर्क,
हिन्दु मुसलमान का,
निभाया रिस्ता उसनै,
इन्सान तै इन्सान
का
वा पढ़ती
रही, वा गढ़ती
रही, वा बढ़ती
रही, वा चढ़ती
रही
नहीं चाहया
खिताब री, थी
घड़ी लाजवाब री।।
भारत देश
याद राखैगा, दलित
झलकारी नै
फिरंगी तै पेच
फंसाये, कोरी जात
की नारी नै
वो घिरी
नहीं, वो फिरी
नहीं, वो डरी
नहीं, वो मरी
नहीं
रणबीर करता याद
री, उसकी न्यारी
सी आब री।।
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